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( १३२ )
यहाँ सांख्य मत वालों के सिद्धान्त की ओर संकेत किया गया है ।
एक और विचारधारा वाले, जिन्हे 'सूपकार' कहते हैं, इस अनादि तत्त्व को भोज्य पदार्थों में देखते हैं । यह विचार ऐसा है मानो किसी होटल वाले से यह कहा जा रहा हो कि रसोई घर में बनाये गये भोज्य पदार्थों की सूची ही परमात्मा के समान महत्व रखती है ।
सूक्ष्म इति सूक्ष्मविदः स्थल इति तद्विदः । मूर्त इति मूर्तविदोऽमूर्त इति च तद्विदः ||२३| सूक्ष्मवेत्ता इसे 'सूक्ष्म' कहते हैं श्रीर स्थूलविद् इसे स्थूल' कहते हैं । मूर्ति-पूजक इसे मूर्ति मं देखते हैं और निराकार के उपासक इसको 'निराकार' कहते हैं ।
इस मन्त्र में नैयायिकों के सिद्धान्त का हवाला दिया गया है । उनके विचार में यह संसार परमात्मा का 'परिणाम' है । ये 'परिणाम' सामान्यतः तीन प्रकार का होता है - 'प्रण', 'मध्यम' और 'विभु' | 'अणु' परिणाम के समर्थक यह दावा करते हैं कि सनातन तत्त्व का स्वरूप अत्यन्त सूक्ष्म है और उसका अधिष्ठान हमारे हृदय की गुफा के सूक्ष्म भाग में है । इस भाव को यहाँ 'अणु' से भी सूक्ष्म कह कर समझाया गया है ।
भौतिकवादी 'लोकायत' कहते हैं कि इस जीवन में हम इस परम-शक्ति को अपने स्थूल शरीर में प्राप्त कर सकते हैं। हिन्दुनों के दर्शन शास्त्रों में भौतिकवादियों को तोन स्पष्ट श्रेणियों में विभक्त किया गया है । ये इस परम सत्ता को विविध प्रकार से मानते हैं । कुछ व्यक्तियों को 'देहात्मवादी ' कहा जाता है क्योंकि ये शरीर को ही आत्मा समझते हैं । 'इन्द्रियात्मवादी' वे हैं जो इन्द्रियों को 'आत्मा' मानते हैं | तीसरी श्रेणी वाले 'मन श्रात्मवादी' हैं क्योंकि उनके विचार में 'मन' ही आत्मा है ।
'अगम' में आस्था रखने वाले आगमी परमात्म-तत्त्व को मूर्ति म देखते हैं, जैसे त्रिशूलधारी 'महादेव', सुदर्शन चक्रधारी 'विष्णु', धनुर्धारी 'राम' और वंशीधर 'कृष्ण' आदि ।
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