________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
( १३० ) यायी कहते हैं कि समस्त संसार की उत्पत्ति पाँच तत्वों से हुई है । इस विचारधारा वाले व्यक्तियों को 'लोकायत' कहा जाता है ! यहाँ यह कहना हास्यास्पद प्रतीत होगा कि अपनी विशेष अनुभूति में ये 'आकाश' जैसे सूक्ष्म तत्त्व के अस्तित्व में भी विश्वास नहीं रखते । इस तरह 'लोकायत केवल वायु, अग्नि, जल और पथ्वी नाम के चार तत्त्वों को संसार का उद्गम मानते हैं।
इसके विपरीत 'सांख्य' यह मानते हैं कि संसार की उत्पत्ति तीन गुणों ('सत्व', 'रजस्' और 'तमस्') से हुई है । ये तीन गुण मनुष्य के मन की प्रवृत्ति को प्रकट करते हैं । इनके विचार में 'प्रलय' संसार की वह अन्तिम स्थिति है जिसमें यह (संसार) अव्यक्त एकरूपता में स्थित रहता है । तब ये तीन गुण सन्तुलित रहते हैं। जब इनका सन्तुलन बिगड़ जाता है तब ये विविध नाम रूप में परिणत होकर पदार्थमय सृष्टि बन प्रकट होते हैं ।
'शव', जो दक्षिण भारत में अधिक है, यह विश्वास करते हैं कि 'वास्तविक तत्त्व' तीन तत्त्वों के मिलने से बनता है जो 'आत्मा', 'अविद्या' और 'शिव' हैं।
पादा इति पादविदो विषया इति तद्विदः ।
लोका इति लोकविदो देवा इति च तद्विदः ॥२१॥ जो (व्यक्ति) पाद (अर्थात् तीन भाग) से परिचित हैं वे आत्मा को ‘पाद' कहते हैं । इन्द्रिय-विषय में आस्था रखने वाले आत्मा को 'विषय' कहते हैं । 'लोक' परम-तत्त्व को 'लोक' कहते हैं और 'देव' इसे इसी (देव) नाम से पुकारते तथा सृष्टि का रचयिता मानते हैं। ___ 'पाद ऐसा विश्वास रखते हैं कि 'आत्मा' के तीन भाग हैं । इन तीनों को ॐ की उपासना की व्याख्या करते हुए विस्तार से समझाया जा चुका है । इस प्रकार यह कहा जाता है कि परम-तत्व का निर्माण 'जाग्रत', 'स्वप्न' और 'सुषुप्त' अवस्था के कारण होता है ।
'वात्स्यायन' और अन्य ऋषियों के विचार में वास्तविक स्वरूप' शब्द,
For Private and Personal Use Only