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( ८२ ) अवस्था पहली अवस्था के बाद ही अनुभव में आती है । पदार्थमय संसार से प्राप्त अनुभवों द्वारा 'विश्व' अपने मानसिक क्षेत्र की वासनामों का बाह्यसंसार में निक्षेप करता है । इन्हीं वासनामों से भ्रान्ति की उत्पत्ति होती है जो स्वप्न-द्रष्टा के लिए मिथ्या-जगत के स्वप्नों की रचना करती है।
इन दोनों में एक और समानता पायी जाती है और वह इन दोनों ( 'उ' तथा 'स्वप्नावस्था' ) का मध्यवर्ती होना है। एक 'अ' और 'म्' के बीच में है और दूसरी 'जाग्रत' तथा 'सुषुप्ति' के मध्य विद्यमान रहती है ।
जो व्यक्ति ॐ का उत्चारण करते समय उसकी मात्रा 'उ' तथा सूक्ष्म शरीर से सम्पर्क स्थापित करते हैं उनके मन एवं बुद्धि असाधारण रूप से विकसित होते हैं जिससे उनकी संसार के असामान्य प्रखर-बुद्धि व्यक्तियों में गणना होती है । इस संसार में भी जहाँ लोभ तथा पारस्परिक प्रतियोगिता ही मनुष्यों के मुख्य व्यवसाय हैं, इस कोटि के विशेष बुद्धि-चातुर्य वाले मनुष्यों का बड़ा सम्मान होता है । 'डालर' की ईश्वरवत् पूजा करने वाले देश में भी मस्तिष्क-निधि (Brain Trust) को सब अपना शिर झुकाते हैं ।
___ वैदिक युग में सर्व-साधारण लोगों में पर्याप्त प्राध्यात्मिक पूर्णता थी; इसलिए उस काल की प्रार्य-संस्कृति बहुधा आध्यात्मिक-जीवन की दृढ़ नींव पर खड़ी थी । इसी कारण तब एक गृहस्थी को यह उपदेश विशेष प्रोत्साहन देता था कि ॐ का उच्चारण करने से उसके वंश में पवित्रता तथा प्राध्यात्मिक संस्कृति का संचार होगा।
आजकल भी हम यह देखते हैं कि एक इंजिनीयर पिता कम से कम एक पुत्र को इंजीनियर बनाना चाहेगा। हमें यह बात भी विदित है कि यदि कोई पिता किसी विशेष व्यवसाय (जसे वकालत अथवा डाक्टरी) में सफल होता है तो उसकी सन्तान को भी इस व्यवसाय में रुचि होती है । मनुष्य की इस मनोवैज्ञानिक वंश-परम्परा (haredity) को ध्यान में रखते हुए उपनिषद् कहता है कि जिस वंश में इस उच्च कोटि के प्रकाण्ड पण्डित का जन्म होता है उसमें कोई व्यक्ति संस्कृति-प्रेम तथा धर्म-रुचि में कोरा नहीं पाया जायेगा।
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