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यदि हम एक बार किसी व्यक्ति को अपने दुर्गुण एवं दुर्बलताओं तथा मानसिक व्यस्तताओं को लाँघ लेने की शिक्षा दे दें तो उसकी सभी मानसिक त्रुटियाँ तथा दुर्बलताएँ दूर हो जायेंगी और वह महान् शक्तिशाली, कुशल, विद्वान् और निर्भीक पुरुष सिद्ध होगा । इसलिए स्वभावतः वह जीवन के सभी अंगों में ख्याति प्राप्त कर लेगा।
स्वप्नस्थानस्तैजस उकारा द्वितीया मात्रोत्कर्षादुभयत्वाद्वोत्कर्षति ह वै ज्ञानसंतति समानश्चभवति नास्याब्रह्मवित्कुले भवति य एवं वेद ॥१०॥
तेजस'कहा जाने वाला स्वप्नावस्था का अनुभवी जीवात्मा ॐ का दूसरा अक्षर 'उ' है क्योंकि यह श्रेयस है अथवा (ॐ की) दो मात्रामों के मध्य आता है । इसे जानने वाला व्यक्ति उच्चतर ज्ञान प्राप्त कर लेता है। उससे सब समान व्यवहार करते हैं और उसके कुल में कोई ऐसा व्यक्ति नहीं पाया जाता जो ब्रह्म को नहीं जानता।
मर्ति-पूजा के साधन को समझाते हुए हमें विस्तार से यह समझाया जा रहा है कि ॐ की दूसरी मात्रा 'उ' में हम किसका प्रारोप करें। हमारे सूक्ष्म शरीर से सम्पर्क स्थापित करने वाला अहंकार, जिसे स्वप्न-द्रष्टा कहते हैं, स्वप्न को अनुभव करते समय हमारे भीतरी जगत के सूक्ष्म पदार्थों में विचरता रहता है । उस का ॐ की दूसरी मात्रा 'उ' में आरोप किया जाता है।
स्वप्न-द्रष्टा तथा मात्रा 'उ' में जो ममानता पायी जाती है उसे ऋषि ने इस उद्देश्य से समझाया है कि शिष्य सुगमता से ॐ में ध्यान लगा सके।
कहा गया है कि इन दोनों में एक समानता यह है कि ये श्रेयस हैं। 'उ' अक्षर 'म' के बाद पाने के कारण वरीयस है। इस प्रकार स्वप्नावस्था तैजस को भी जानतावस्था (वैश्वानर) से श्रेयस कहा गया है क्योंकि दूसरी
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