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नहीं होता कि जाग्रतावस्था के पदार्थ हमारे लिए कोई प्रयोजन रखते हैं; इसलिए (इन दोनों अवस्थाओं में) आदि और अन्त होने के कारण यह पदार्थ निश्चित रूप से प्रसार हैं।
इतना मुन लेने के बाद ऐसा प्रतीत होता है कि कोई सत्संगी उठ खड़ा होता है और यह शंका करता है। प्राचार्य को, जिसने जाग्रतावस्था के सभी दृष्ट-पदार्थों को मिथ्या कहा है, इस शंका से बड़ा धक्का लगता है । इस तरह वह एक और युक्ति द्वारा यह सिद्ध करता है कि जाग्रतावस्था के संसार के विविध पदार्थों में एक विशेष गुण पाया जाता है जिससे हम इन्हें स्वप्न-जगत् की वस्तुओं की अपेक्षा वास्तविक समझते हैं ।
शंका करने वाले के विचार में जाग्रतावस्था के पदार्थ -- खान-पान, यान आदि-वास्तव में कुछ अंश तक निश्चित महत्त्व रखते हैं । भोजन से हमारी भूख, जल से प्यास और यान द्वारा प्रेयसी के घर तक जाने की लालसा शान्त होती है; किन्तु स्वप्न के पदार्थों से यह तृप्ति नहीं हो सकती । इस कारण धारणा वाले व्यक्तियों के स्वप्न में दिखायी देने वाली वस्तुओं को अपेक्षा दृष्ट-संसार पदार्थों की वास्तविकता कहीं अधिक है।
यहाँ श्री गौड़पाद ने इस धारणा को निराधार बताया है क्योंकि जाग्रतावस्था की वस्तुओं से होने वाला लाभ स्वप्नावस्या में स्थिर नहीं रह पाता।
जागते हुए हम जो भोजन करते हैं उसके द्वारा हमारी भूख निस्संदेह शान्त हो जाती है; किन्तु इस तुष्टि के प्रतिकूल अनुभव हमें स्वप्नावस्था में होता है । पेट भर कर भोजन कर लेने के थोड़ा समय बाद हम स्वप्न में भूखा होने का अनुभव करने लगते हैं। इस तरह हम यह कह सकते हैं कि जाग्रतावस्था में जिस भोजन ने हमें सन्तुष्ट किया था वही भोजन स्वप्नावस्था की हमारी भूख को दूर करने में असमर्थ रहा; इससे यह समझा जा सकता है कि भोजन द्वारा तृप्त होने के तथ्य में स्वप्नावस्था में वपरीत्य पाया जाता है । साथ ही यह कहना भी यक्त होगा कि स्वप्नावस्था में सेवन किये
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