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( ११४ )
जो यथार्थवादी जाग्रतावस्था के अनुभवों को अधिक महत्व देते हैं उनके प्रश्न का उत्तर प्रस्तुत मन्त्र में मिल जाना चाहिए। उनके विचार में जाग्रतावस्था में दो बातें पायी जाती हैं—- 'वास्तविक ' संसार और 'प्रवास्तविक' ग्रावेगमय जगत | इसका समाधान श्री गौड़पाद ने इस प्रकार किया है— स्वप्न जगत में भी स्वप्नद्रष्टा के आवेग तथा विचारों पर आधारित 'अवास्तविक' जगत की अनुभूति होती है । यदि हमारे स्वप्न-जगत की ऊपर कही गयी दोनों बातें मिथ्या हैं तो जाग्रतावस्था के वास्तविक दृष्ट-पदार्थ और 'अवास्तविक' विचारजगत दोनों निश्चय से मिथ्या होंगे ।
उभयोरपि वैतथ्यं भेदानां स्थानयोर्यदि ।
के एतान्युध्यते भेदान्को वै तेषां विकल्पकः ॥११॥ यदि 'जाग्रत' तथा 'स्वप्न' अवस्था में दृष्टिगोचर होने वाले पदार्थ मिथ्या हैं तो कौन इन्हें अनुभव करता है और कौन इनकी कल्पना करता है ।
शंका करने काला यह प्रश्न कर सकता है जिसे इस मन्त्र में समझाया गया है । तो समस्या यह हुई कि यदि वेदान्तवादियों के मतानुसार 'जाग्रत' और 'स्वप्न' अवस्था के दृष्ट-पदार्थ तथा मानसिक विचार मिथ्या हैं तब किसी ऐसे अनुभव करने वाले की अवश्य सत्ता होगी जो इन दोनों का ज्ञान रखता है | यहाँ शंका करने वाले यह प्रश्न करते हैं कि यदि सब कुछ मिथ्या है तो इनके पीछे कोई न कोई वास्तविक तत्व अवश्यमेव होगा । यदि ऐसा है तो इन पदार्थों का द्रष्टा, मानसिक तरंगों को अनुभव करने वाला तथा विचारों का ज्ञाता कौन हो सकता है ?
यहाँ इस प्रश्न को पूछने में एक गूढ़ रहस्य निहित है । यदि वेदान्तानुयायी इस वास्तविक सत्ता को न बता पाएँ तो वे स्वयमेव 'आत्मा' से सम्बन्धित उक्ति का खण्डन कर देंगे। किसी बात को स्मरण रखने तथा ज्ञान प्राप्त करने के लिए किसी कर्त्ता ( अनुभवी ) का होना अनिवार्य है । पदार्थ ज्ञान के लिए भी किसी ज्ञाता का होना श्रावश्यक है । इस विचार से
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