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में वास्तविक हत्या को देखने पर। इसका कारण यह है कि सिनेमा में बैठे हुए हमें पूरा ज्ञान रहता है कि उस चलचित्र के विविध दृश्य हमारे मनोरंजन के लिए दिखाये जा रहे है और उनसे हमारा कोई सम्बन्ध नहीं होता। इसके विपरीत आपके पास बैठा हुमा एक छोटा बालक अपने वास्तविक व्यक्तित्व को भूल कर उन विविध दृश्यों से हर्ष, विषाद, भय, करुणा प्रादि रसों का प्रदर्शन करने लगता है।
इस तरह प्राचीन प्राचार्यों ने स्पष्ट शब्दों में कहा कि प्रात्मसाक्षात्कार के बाद जब हम अपने भीतर के जीवन-केन्द्र का अनुभव कर लेते हैं तो इन तीन चेतनावस्थानों में जीवन-क्रीड़ा करते रहने पर भी हम उनमें लिप्त नहीं होते, चाहे हम कितने इष्ट एवं अनिष्ट अनुभवों के सम्पर्क में क्यों न आये हों। ____ स्वामी रामकृष्ण परमहंस को गले में कैन्सर (Cancer) होने पर भी यह अनुभव 'वैश्वानर' द्वारा भुक्त प्रतीत होता रहा। ईसा मसीह की यातनाएं केवल उसके शरीर, मन और हृदय से सम्बन्ध रखती थी न कि उसकी आत्मा से।
इनसे पथक रह कर ही हम विरक्त भाव से संसार को देख सकते हैं। इस अवस्था में ही हमें यह पता चलेगा कि यह संसार तो हमारे मनोरंजन के लिए विविध दृश्य प्रस्तुत कर रहा है । इस भाव को समझाने के उद्देश्य से ही यहाँ कहा गया है कि ऐसा मनुष्य संसार के पदार्थों का उपभोग करने पर भी उनमें लिप्त नहीं होता।
प्रभवः सर्वभावानां सतामिति विनिश्चयः ।
सर्वं जनयति प्राणश्चेतोशून्पुरुषः पृथक् ॥६॥ यह बात स्वतः सिद्ध है कि यथार्थ कारण से ही 'कार्य' की उत्पत्ति हो सकती है; 'प्राण' सभी चेतन-पदार्थों को प्रकट करता है; 'पुरुष' चेतनायुक्त प्राणियों की सृष्टि करता है जो अनेक नामरूप से क्रियाशील होते रहते हैं।
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