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मंत्रों की परिभाषा तथा प्रत्येक शब्द को विस्तार पूर्वक समझाना है। इसके विपरीत कारिका या टीकाकार उस समय अपने उद्देश्य में सफल हो जाता है जब वह उन पारिभाषिक शब्दों, कथनों आदि की व्याख्या कर लता है जिन्हें वर्णन करना वह आवश्यक समझता है । इस तरह श्री गौड़पाद ने साधारण पाठकों को समझाने के लिए शास्त्रीय विषय से सम्बन्धित कठिन पावश्यक शब्दों की व्याख्या तक नहीं की। इसमें टीकाकार में किसी प्रकार की कमी न समझी जानी चाहिए क्योंकि कारिका के व्यापार को समझने से हम ऐसी धारणा नहीं कर सकते ।
यदि कोई महान् प्राचार्य 'श्रुति' के इस अभिप्राय को स्पष्ट रूप से समझाने में समर्थ हो जाय कि मनुष्य अपने पार्थिव जीवन के प्रत्येक क्षण में अनुभव प्राप्त करता रहता है तो उसका सब प्रयास सफलता पूर्वक सम्पन्न हो जाता है । मनुष्य की जीवन से मरण पर्यन्त यात्रा अनुभव-पूर्ण होती है । वह प्रति-क्षण बाह्य पदार्थों के सम्पर्क में आकर अनुभव प्राप्त करता रहता है । जब ये अनभव उसे प्राप्त नहीं होते, उसकी जीवन लीला समाप्त हो जाती है।
पश्चिमी दर्शनाचार्य तथा बहुत से भारतीय नैयायिक अपने विचारों को जीवन के एक ही पक्ष पर केन्द्रित रखते हैं। यह है जाग्रतावस्था; किन्तु यह जीवन केवल इन्द्रिय-पदार्थों वाली जाग्रतावस्था पर निर्भर नहीं रहता। जीवन तो सभी पहलुओं का योगफल है। इसमें जाग्रत, स्वप्न तथा सुषुप्त तीनों अवस्थाओं के अनुभवों का समावेश है । यदि हम केवल जाग्रतावस्था के स्थूल संसार को समझने के लिए पदार्थों तथा उनके साथ हमारे सम्बन्ध का विश्लेषण करें तो हमारा यह प्रयास जीवन के एक अंश का मूल्यांकन करने वक सीमित रहेगा।
यदि कोई जौहरी एक सुन्दर तथा कीमती आभूषण में जड़े हुए एक हीरे के किसी पहलू को ध्यान में रख कर ही उसका मूल्य आँकता अथवा उसे खरीदता है तो उसे एक सफल स्वर्णकार नहीं कहा जायेगा। उसके लिए यह आवश्यक होगा कि वह सब परिस्थितियों तथा विविध प्रकार की रोशनी में उस हीरे के सभी पाश्वों को परखे । ऐसे ही यदि कोई दार्शनिक
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