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तीन विविध अवस्थाओं को स्पन्दित तथा प्रलोकित करने वाला जीवन-तत्त्व एक ही है और यह इन तीन अनुभव क्षेत्रों में ममत्व की भावना का संचार करता है ।
यह केवल सिद्धान्त नही बल्कि अनुभव करने योग्य वस्तु है । यह अन्ध-विश्वास नहीं अपितु घोषणा और बुद्धि के लिए एक ललकार है । ईसाइयों तथा मुसलमानों के धर्म ग्रन्थों के विपरीत हिन्दु शास्त्रों में धर्म में अन्ध-विश्वास रखने वालों की प्रशंसा नहीं की जाती बल्कि इस बात पर बल दिया जाता है कि साधक तर्क-बुद्धि से काम लेकर व्यक्तिगत निश्चय की प्राप्ति करें । हम यह बात युक्ति-पूर्ण ढंग से कह सकते हैं कि इन तीन चेतनावस्थाओं में अनुभवी अथवा द्रष्टा एक ही होता है ।
हम दूसरों के अनुभवों को स्मरण नहीं रख सकते । उदाहरण के तौर पर आप मेरे किसी अनुभव को याद नहीं रख सकते और न ही श्रापके किसी अनुभव को मैं स्मरण रख सकता हूँ । इसके विपरीत मैं अपने अनुभवों को इसी तरह याद रख सकता हूँ जैसे आप अपने अनुभवों को । यह बात स्वाभाविक है क्योंकि स्मरण शक्ति से सम्बन्धित सिद्धान्त के अनुसार स्मरण-कर्त्ता तथा अनुभवी अभिन्न हैं । यदि प्राप इस सामान्य, व्यावहारिक तथा उचित मत से सहमत हों तो ग्रापको इस तर्क को मान लेने में कोई कठिनाई नहीं होगी कि तीन चेतनावस्थानों पर एक ही शक्ति का प्राधिपत्य स्वीकार करना अनिवार्य है ।
सिद्ध नहीं होती कि
क्या मुझे यह स्वरण नहीं कि कल मैं कितना जागा और कब तक सोया तथा मैंने क्या कुछ खाया ? यदि मैं गत २४ घंटों में इन तीन अवस्थाओं को याद रख सकता हूँ तो क्या यह बात इन अनुभवों को प्राप्त करने वाली सत्ता एक ही है । मेरे जीवन के तीन क्रिया-क्षेत्रों के अनुभवों को जानने वाला समभाजक वही 'श्रहम्' है जिसे शुद्ध चेतन शक्ति कहा जाता है ।
इस मंत्र में टीकाकार ने हमारे मन में यह विचार भरने का प्रयत्न किया है कि वास्तविक तत्व तथा जीवन-शक्ति एक ही है यद्यपि यह विविध
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