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तीर्थंकर चरित-भूमिका wwwwwwwwwwwwwww * अवस्वापनिका' नामकी निद्राको हरण करता है, तीर्थकरोंके खेलनेके लिए खिलौने रखता है और कुबेरको धनरत्नसे प्रभुका भंडार भरनेके लिये कहता है । कुबेर आज्ञाका पालन करता है । यह नियम है कि, अहंत स्तन-पान नहीं करते है, इसलिए उनके अंगूठेमें इन्द्र अमृतका संचार करता है। इससे जिस समय उन्हें क्षुधा लगती है वे अपने हाथका अंगूठा मुँहमें लेकर चूस लेते हैं। फिर धात्री-कर्म (धायका कार्य ) करनेके लिए चार अप्सराओंको रखकर इन्द्र चला जाता है । ___ ३-दीक्षाकल्याणक । तीर्थंकरोंके दीक्षा लेनेका समय आता है उसके पहिले तीर्थकर वरसी दान देते हैं । इसमें एक वर्षतक तीर्थकर याचकोंको जो चाहिये सो देते हैं । नित्य एक करोड़ आठ लाख स्वर्ण मुद्राओं जितना देते हैं । एक वर्षमें कुल मिलाकर तीन सौ अठासी करोड़ अस्सी लाख स्वर्ण मुद्राएँ दानमें देते हैं । यह धन इन्द्रकी आज्ञासे कुबेर लाकर 'पूरा करता है। ___ जब दीक्षाका दिन आता है तब इन्द्रोंके आसन चलित होते हैं । इन्द्र भक्तिपूर्वक प्रभुके पास आते हैं और उन्हें एक पालकी तैयारकर उसमें बैठाते है । फिर मनुष्य और देव सब मिलकर पालकी उठाते हैं, प्रभुको वनमें ले जाते हैं । प्रभु वहाँ सब वस्त्रालंकार उतारकर डाल देते हैं और इन्द्र देवदुष्य वस्त्र देता है उसे ग्रहण करते हैं। फिर वे केलंचन
१-अपने ही हाथोंसे अपने केश उखाड़नेको केशलुंचन कहते हैं ।
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