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तीर्थंकर चरित-भूमिका
ज्योतिष्कोंके दो ( संख्या ६३-६४ तक ) इन्द्र कुल मिलाकर ६४ इन्द्र अपने लक्षावधी देवताओं सहित सुमेरु पर्वतपर भगवानका जन्मोत्सव करने आते हैं । *
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सबके आ जाने बाद अच्युतेन्द्र जन्मोत्सव के उपकरण लानेकी अभियोगिक देवताओंको आज्ञा देता है । वे ईशान कोणमें जाते हैं । वैक्रियसमुद्वातद्वारा उत्तमोत्तम पुद्गलोंका आकर्षण करते हैं। उनसे (१) सोनके ( २ ) चाँदी के ( ३ ) रत्नके ( ४ ) सोने और चाँदी के ( ५ ) सोने और रत्नके ( ६ ) चाँदी और रत्नके ( ७ ) सोना चाँदी और रत्न के तथा (८) मिट्टी के इस तरह आठ प्रकारके कलश बनाते हैं । प्रत्येक प्रकारके कलशकी संख्या एक हजार आठ होती है । कुल मिलाकर इन घड़ोंकी संख्या एक करोड़ और साठ लाखकी होती है । इनकी ऊँचाई पचीस योजन, चौड़ाई बारह योजन और इनकी नालीका मुँह एक योजन होता है । इसी प्रकार उन्होंने आठ तरह के पदार्थों से झारियाँ, दर्पण, रत्नके करंडिये, सुप्रतिष्टक (डिब्बियाँ) थाल, पात्रिकाएँ ( रकाबियाँ) और पुष्पों की चंगेरियाँ भी तैयार कीं । इनकी संख्या कलशोंहीकी भाँति प्रत्येककी एक हजार और आठ थीं । लौटते समय वे 1 मागधादि तीर्थोंसे मिट्टी, गंगादि महा नदियोंसे जल, ' क्षुद्र हिमवंत पर्वत से सिद्धार्थ पुष्प ( सरसों के फूल ) श्रेष्ठ गंध
* ज्योतिष्कोंके असंख्यात इन्द्र हैं । वे सभी आते हैं । इसलिए असंख्यात इन्द्र आकर प्रभुका जन्मोत्सव करते हैं । असंख्यात के नाम चंद्र और सूर्य दो ही हैं इसलिए दो ही गिने गये हैं ।
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