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जैन-रत्न
और सर्वौषधि, उसी पर्वतके 'पद्म' नामक सरोवरमेंसे कमल; इसी प्रकार अन्यान्य पर्वतों और सरोवरोंसे भी उक्त पदार्थ लेते आते हैं। ___ सब पदार्थोंके आ जानेपर अच्युतेन्द्र भगवानको, जिन घड़ोंका ऊपर उल्लेख किया गया ह उनसे, स्नान कराता है, शरीर पौंछकर चंदनका लेप करता है, पुष्प चढ़ाता है, रत्नकी चौकीपर चाँदीके चावलोंसे अष्टमंगल लिखता है और देवताओं सहित नृत्य, स्तुति आदि करके आरती उतारता है। __ फिर शेष ( सौधर्मेंद्रके सिवा ) ६२ इन्द्र भी इसी तरह पूजा प्रक्षालन करते हैं। __तत्पश्चात ईशानेन्द्र सौधर्मेन्द्रकी भाँति अपने पाँच रूप बनाता है, और सौधर्मेन्द्रका स्थान लेता है। सौधर्मेन्द्र भगवानके चारों तरफ स्फटिक मणिके चार बैल बनाता है। उनके सींगोंसे फव्वारों की तरह पानी गिरता है। पानीकी धारा चारों ओरसे भगवानपर पड़ती है । स्नान करा कर फिर अच्युतेन्द्रकी भाँति ही पूजा, स्तुति आदि करता है। तत्पश्चात वह फिरसे पहिलेहीकी भाँति अपने पाँच रूप बनाकर भगवानको ले लेता है।
इस प्रकार विधि समाप्त हो जानेपर सौधर्मेन्द्र भगवानको वापिस उनकी माताके पास ले जाता है । सोनेकी आकृति माताकी गोदसे हटाकर भगवानको लिटा देता है, माताकी
१-दर्पण, वर्धमान, कलश, मत्य युगल, श्रीवत्स, स्वस्तिक, नंदावर्त और सिंहासन ये आठ मंगल कहलाते हैं।
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