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संयत अध्ययन
७९७ प. ३.कुसीले णं भंते ! कइविहे पण्णत्ते?
प्र. ३. भंते ! कुशील कितने प्रकार के कहे गये हैं? उ. गोयमा ! दुविहे पण्णत्ते,तं जहा
उ. गौतम ! दो प्रकार के कहे गये हैं, यथा१. पडिसेवणाकुसीले य, २. कसायकुसीले य।
१. प्रतिसेवना-कुशील, २. कषाय-कुशील। प. ३.(क) पडिसेवणाकुसीले णं भंते ! कइविहे पण्णत्ते? प्र. ३.(क) भंते ! प्रतिसेवनाकुशील कितने प्रकार के कहे गए हैं ? उ. गोयमा ! पंचविहे पण्णत्ते,तं जहा
उ. गौतम ! पांच प्रकार के कहे गए हैं, यथा१. नाण-पडिसेवणाकुसीले,
१. ज्ञान-प्रतिसेवनाकुशील, २. दंसणपडिसेवणाकुसीले
२. दर्शन-प्रतिसेवनाकुशील ३. चरित्तपडिसेवणाकुसीले
२. चारित्र-प्रतिसेवनाकुशील, ४. लिंग-पडिसेवणाकुसीले,
४. लिंग-प्रतिसेवनाकुशील, ५. अहासुहुमपडिसेवणाकुसीले नामं पंचमे।२
५. यथासूक्ष्म-प्रतिसेवनाकुशील। प. ३.(ख) कसायकुसीले३ णं भंते ! कइविहे पण्णत्ते?
प्र. ३.(ख) भंते ! कषायकुशील कितने प्रकार के कहे गए हैं ? उ. गोयमा ! पंचविहे पण्णत्ते,तं जहा
उ. गौतम ! पांच प्रकार के कहे गए हैं, यथा१. नाण-कसायकुसीले, २. दंसण-कसायकुसीले,
१. ज्ञान-कषायकुशील, २. दर्शन-कषायकुशील, ३. चरित्त-कसायकुसीले, ४. लिंग-कसायकुसीले,
३. चरित्र-कषायकुशील, ४. लिंग-कषायकुशील, ५. अहासुहुम-कसायकुसीले नामं पंचमे।
५. यथासूक्ष्म-कषायकुशील। प. ४.णियंठे णं भंते! कइविहे पण्णत्ते?
प्र. ४. भंते ! निर्ग्रन्थ कितने प्रकार के कहे गए हैं? उ. गोयमा ! पंचविहे पण्णत्ते,तं जहा
उ. गौतम ! पांच प्रकार के कहे गए हैं, यथा१. पढमसमय-नियंठे,
१. प्रथम समय निर्ग्रन्थ, २. अपढमसमय-नियंठे,
२. अप्रथम समय निर्ग्रन्थ, ३. चरिमसमय-नियंठे,
३. चरम समय निर्ग्रन्थ, ४. अचरिमसमय-नियंठे,
४. अचरम समय निर्ग्रन्थ, ५. अहासुहुम-नियंठे नाम पंचमे।५
५. यथासूक्ष्म निर्ग्रन्थ। प. ५.सिणाएणं भंते ! कइविहे पण्णत्ते?
प्र. भंते ! स्नातक कितने प्रकार के कहे गये हैं ? उ. गोयमा ! पंचविहे पण्णत्ते,तं जहा
उ. गौतम ! पांच प्रकार के कहे गये हैं, यथा१.अच्छवी,२.असबले,३.अकम्मसे, ४. संसुद्ध-नाण
१. अच्छवी-शरीर की आसक्ति से पूर्ण मुक्त, २. असबलदसणधरे, अरहा, जिणे केवली, ५.अपरिस्सावी।६
सर्वथा दोष रहित चारित्र वाले,३.अकर्माश घाती कर्म रहित, ४. विशुद्ध ज्ञान दर्शनधर-अरहंत जिन केवली, ५. अपरिश्रावी-सूक्ष्म साता वेदनीय के अतिरिक्त संपूर्ण कर्म
बंधों से मुक्त। २. वेद-दारं
२. वेद-द्वारप. १.पुलाएणं भंते ! किं सवेयए होज्जा,अवेयए होज्जा? प्र. १. भंते ! पुलाक क्या सवेदक होता है या अवेदक
होता है? १. प्रतिसेवना कुशील निर्ग्रन्थ १. ज्ञान, २. दर्शन, ३. चारित्र, ४. लिंग (उपकरण) एवं ५. शरीर आदि अन्य हेतुओं से संयम के मूलगुणों में या
उत्तर-गुणों में परिस्थितिवश दोष लगाता है। इस अपेक्षा से ही इसके उक्त पांच प्रकार कहे गये हैं। २. ठाणं अ. ५, उ.३, सु. ४४५ ३. (क) कषाय कुशील निर्ग्रन्थ ज्ञानादि उक्त पांच हेतुओं से संज्वलन कषाय की किसी भी एक प्रकृति में प्रवृत्त होता है। इस अपेक्षा से इसके पांच
प्रकार हैं। कषाय में प्रवृत्त होते हुए भी यह निर्ग्रन्थ संयम के मूलगुणों में या उत्तरगुणों में किसी भी प्रकार का दोष नहीं लगाता है अर्थात्
संयम समाचारी की छोटी बड़ी सभी विधियों का यथार्थ पालन करता है। उसके भाव एवं भाषा में केवल संज्वलन कषाय प्रकट होता है। (ख) ठाणं. अ. ५, उ. ३, सु. ४४५ ४. इस निर्ग्रन्थ में कषाय प्रवृत्ति का एवं दोषों के सेवन का सर्वथा अभाव होता है। अतः केवल काल की अपेक्षा से इसकी पांच अवस्थाएं कही हैं। ये
निर्ग्रन्थ लोक में अशाश्वत हैं अर्थात् कभी होते हैं और कभी नहीं होते हैं। अतः पृच्छा समय में केवल प्रथम समय में ही एक या अनेक निर्ग्रन्थ मिलते हैं। इसी प्रकार कभी केवल अप्रथम समयवर्ती, कभी केवल चरम समयवर्ती, कभी केवल अचरम समयवर्ती निर्ग्रन्थ मिलते हैं। इन अपेक्षाओं
से चार भेद कहे गये हैं और कभी चारों भंगों में से अनेक भंग वर्ती निर्ग्रन्थ मिलते हैं इस अपेक्षा से पांचवाँ भेद कहा गया है। ५. ठाणं अ. ५, उ. ३, सु. ४४५ ६. इस निर्ग्रन्थ में कषाय उदय, कषाय की प्रवृत्ति, दोष सेवन या अशाश्वतता आदि न होने से भेद नहीं है। फिर भी पूर्वोक्त निर्ग्रन्थों के ५-५, भेद कहे
गये हैं इसलिए इनके पांच गुणों का समावेश करके पांच प्रकार कहे गये हैं।