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उच्च कुलमें जन्म । [७१ जैन विद्वान भागचंदजीकी संगति व वैय्यावृत्तिसे आपको बहुत लाभ होता था। इनके वंशमें बंडी मन्नालाल और हीरालाल विद्यमान है।
सं० १९१२ में सेठ लालजी बंडीके खानदानके लोग सेठ कस्तूरचंदजी हीरालालजी आदिने गिरनार तीर्थके मंदिरोंका जीर्णाद्धार कराया तथा एक नवीन मंदिरकी स्थापनाकर उसकी प्रतिष्ठा सं० १९१५ में कराई।
इस समय परताबगढ़में घीयावाला, रतनलालजी जुवा और साह कस्तूरचंदजी तलाटी हुमडोंमें मुखिया हैं।
हूमड़ जातिके लोक बागड़से निकलकर कुछ मालवामें व कुछ बम्बई, शोलापुर और गुजरातमें आकर बसे हैं। . शोलापुरके इमड़ोंने ऐश्वर्यमें विशेष उन्नति की है। वहाँके
प्रसिद्ध सेठ हरीभाई देवकरणने श्री मांगीशोलापुरमें हमड़ोंका तुंगी, सम्मेद शिखर, पालीताना आदि तीर्थो प्रभाव । पर मंदिर जीर्णोद्धारे व धर्मशाला आदिमें
बहुत द्रव्य खर्च किया है तथा प्रत्येक धर्मकार्यमें दानार्थ अग्रमामी रहते हैं। इनके वंशके सेठ वालचंद, हीराचंद और फूलचंद तीनों भाई उदारचित्त हैं। इसी तरहं सेठ रावजी नानचंद, सेठ हीराचंद अमीचंद, सेठ सखाराम व हीराचंद नेमचंद, सेठ नाथा रंगजी गांधी है। इन्होंने भी श्री गजपंथा, तारंगा, गिरनार, पावागढ़ आदि तीर्थों पर श्री जिन मंदिर निर्मापण आदिमें बहुत द्रव्य खर्च किया है । सेठ हीराचंद नेमचंद विद्वान और शास्त्रके मरमी तथा जैन जातिके उत्थानमें मुख्य भाग लेनेवाले हैं । सेठ नाथा रंगंनी विद्यादान व शास्त्र प्रचारमें अति प्रेमी हैं। आपके वंशके सेठ
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