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अध्याय तीसरा ।
परताबगढ़ शहरमें ८५०० कुल वस्ती है । जिसमें १५०० जैनी हैं इनमें १००० दिग०, ३०० श्वे०, और २०० स्थानकवासी हैं । इन दिगम्बरियोंमें थोडेसे नरसिंहपुरा जातिके हैं जिनका १ जूदा मंदिर है शेष सर्व हूमड़ हैं। इनके ३ मंदिर बड़े २ आलीशान और सुन्दर हैं। पाइलिया गोत्रधारी संवत् १७००के अनुमान जीवराजजी कामदार बड़े प्रसिद्ध हुए उनके बाद क्रमसे बर्दुवानजी, सूरजी, लाननी, कपूरजी, शिवजी, नवलचंदजी, जोधकरणजी प्रधान पदधारी हुए उनके पुत्र काननी परताबगढ़ राज्यकी ओरसे जोधपुरमें वकील हैं। जोधकरणजीके बड़े भाई जोधराजनी भी प्रधान हुए, उनके पोते एक मुन्नालाल है जो वर्तमान महाराज कुंवरके प्राइवेद सेक्रेटरी हैं। दूसरे पन्नालालजी है जो मंगरा जिले में हाकिम रह चुके हैं।
इसी गोत्रमें सखारामजी प्रधान हुए हैं इनकी सन्तान शाहनी चम्पालाल हैं जो जातिमें मुखिया व कौंसिलमें काम करते हैं। इसी गोत्रमें लालजी प्रधान हुए हैं उनके वंशमें शाहजी रत्नलाल अब मौजूद हैं यह गोम्मटसार समयसार आदि जैन शास्त्रोंके अच्छे मरमी हैं।
हमड़ ज्ञातिकी तलाटी अड़कमें शाह जड़ावचंदजी प्रधान हुए हैं इन्हींके वंशमें पंडित किशनलाल एक अच्छे जैन विद्वान थे जो हालहीमें स्वर्ग पधारे हैं। बंडी अड़कमें शाहजी शंकरलालनी प्रधान होगए हैं जिनके वंशमें पन्नालालजी आदि राज्यमें हेडक्लर्क हैं। " श्री गिरनारजी तीर्थमें दिगम्बर जैनियोंके प्रभावको विस्तारनेवाले बड़ी कस्तूरचंदजी एमड़ यहीं हो गए हैं। यह धनाढ्य, धर्मात्मा व शास्त्रोंके ज्ञाता भी थे । धर्मसे अत्यन्त प्रेम करते थे। प्रसिद्ध
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