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६८] अध्याय तीसरा ।
हुमड ज्ञातिका मुख्य केन्द्रस्थान परताबगढ़े राज्य है, उसमें परताबगढके इस जातिके बहुत प्रतिष्ठित दिवान आदि हो
___ गए हैं व अब भी कई उच्च राज्य कर्मचारी हूमड। हैं । परतावगढ़ शहरसे ८ मील देवगढ एक पुरानी वस्ती है। इसको बीकाजी महाराजने सं० १६१० में बसाया था। कई पीढ़ियोंतक यह बड़ाभारी नगर रहा था जिसका प्रमाण यह है कि यहाँ अमृतसागर, केसरविलास, परतापवावड़ी आदि कई मनोहर वापिकाएं हैं व पुराने मकान है। यहाँ दिगम्बर जैनियोंका एक बड़ा आलीशान मंदिर है जिसकी प्रतिष्ठा सं० १७७४ में हुई थीं उस समय हुमड़ोंके यहां ८०० घर थे। इस मंदिरके मूलनायक श्री मल्लिनाथ स्वामी है। मंदिरके प्रतिष्ठाकारक वर्षावत रिषभदासके पुत्र वर्द्धमानजी हुमड़ हुए है । यहाँ एक शिलालेख है उससे पता लगता हैं कि मूलसंवी भट्टारक रत्नचंद्रके उपदेशसे हुमड़ ज्ञातीय मंत्रेश्वर गोत्रधारी संघवी वर्षावतके पुत्र वर्द्धमान आदिकोंने प्रतिष्ठा कराई। हमारे चरित्रनायकका जन्म जिस मंत्रश्वर गोत्रमें हुआ है उसी में यह वर्षांवतनी भी थे।
सारांश नकल लेख । "ऊ. स्वस्ति.. विक्रमादित्य समयातीत सं० १७७४ वर्षे शाके १६३९ प्रवर्तमाने माह सुदी १३ रवि श्री देवगढ़ नगर महाराजाधिराज महारावत श्री पृथवीसिंहजी विजयी राज्ये कुंवर श्री पहाड़सिंघ विराजमाने श्री मूलसंधे बलात्कारगणे श्री कुंद० भ० श्रीरत्नचंद्र त. भ० श्री हर्षचंद त० भ० श्रीशुभचंद्र त० भ० श्री अमरचंद्र त. भ० श्री रत्नचंद्र गुरूपदेशात् श्रीमत् हूंबड ज्ञातीय मंत्रीश्वर गोत्रे
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