________________
उच्च कुलमें जन्म । [६७ घृणा नहीं है। इन दोनों भेदोंमें खानपान भी सर्व तरहसे होता है। फर्क केवल परस्पर लग्न न होनेका है।
बड़ौधामें वाड़ी मुहल्लेके दिगम्बर जैन मंदिरके प्रतिबिम्बोंसे पता लगता है कि संवत १६०४ में काष्ठासंधी भट्टारक विद्याभूषणके उपदेशसे हुंबड़ ज्ञातीय अनंतमतीने श्री पार्श्वनाथ स्वामीकी प्रतिष्ठा कराई । लेख यह है
"सं० १६०४ वर्षे वैशाख वदी ११ शुक्रे काष्ठासंघे नंदीतट गच्छे विद्यागणे भट्टारक श्री रामसेनान्वये भ० श्री विशालकीर्ति तत्पट्टे भट्टारक श्री विश्वसेन तत्पट्टे भ० श्री विद्याभूषणेन प्रतिष्ठितं-हूंबड ज्ञातीय गृहीत दीक्षा बाई अनंतमती नित्यं प्रणमति ।
दूसरे भी इसी मंदिरकी एक प्रतिमाके लेखसे काष्ठासंधी हूंबड़ ज्ञातिका पता लगता है। लेख यह है:___ "सं० १६८६ वर्षे चैत्र वदी ३ भौमे भ० श्री रत्रभूषण भ० जयकीर्ति हूंबड़ ज्ञातीय....पार्श्वनाथं प्रणमति"
इस लेखके यह भट्टारक काष्ठासंधी हैं इसके प्रमाणमें एक इसी मंदिरकी दूसरी प्रतिमाका लेख है
"श्री काष्ठासंघे सं० १६८६...भ....भूषण भ० जयकीर्ति नरसिंहपुरा ज्ञातीय..."
इस लेखसे नरसिंहपुरा जातिका काष्ठासंघी होना भी सिद्ध होता है।
नरसिंहपुरा जातिके काष्ठासंघी होनेके प्रमाणमें इसी मंदिरकी एक और प्रतिमाका यह लेख हैं
" संवत १६५८ मा. सु. ५ दि० श्री काष्ठासंघे भ० श्री विश्वभूषण गुरूपदेशात् नरसिंहपुरा ज्ञातीय भालण होड़ा गोत्रे सा सिंहदे भा० ब्रह्मयोजिता...."
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org