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२८ भाषारहस्यप्रकरणे - स्त.१.गा.४
० भाषाद्रव्येषु सूक्ष्मात्व-बादरत्वविरोधपरिहार: ० आत्मप्रदेशैः सहैकक्षेत्रावस्थितान्येव न त्वात्मप्रदेशैः स्पृष्टान्यप्यात्मप्रदेशावगाहक्षेत्राबहिरवस्थितानि ।।२।। तान्यप्यनन्तरावगाढान्येव न परम्परावगाढानि। येष्वात्मप्रदेशेषु यानि भाषाद्रव्याण्यवगाढानि तैरात्मप्रदेशैस्तान्येव गृह्णाति न त्वेक-द्वित्रात्मप्रदेशव्यवहितानि ।।३।। तान्यपि भाषायोग्यस्कन्धानां मिथ एव प्रदेशस्तोकबाहुल्याऽपेक्षयाऽणूनि बादराणि च न त्वन्यथा ।।४ ।। तानि च ___ 'न त्वन्यथा' इति । यद्यपि विशेषावश्यकभाष्यादौ भाषाद्रव्येषु निश्चयतः सूक्ष्मत्वमेवोक्तं, न तु बादरत्वमपि तथापि अत्र भाषायोग्यस्कन्धानां अन्यभाषायोग्यस्कन्धप्रदेशस्तोकबहुत्वमधिकृत्याऽणुत्व-बादरत्वे कथिते इति न विरोधः | यानि स्वेतरभाषास्कन्धप्रदेशापेक्षया स्तोकप्रदेशानि तान्यनि, यानि च स्वेतरभाषास्कन्धप्रदेशापेक्षया प्रभूतप्रदेशोपचितानि तानि बादराणीत्येवं व्याख्यानं कर्तव्यम न तु भाषायोग्यस्कन्धानामौदारिकादिस्कंधप्रदेशस्तोकबहुत्वमपेक्ष्याऽणुत्वं बादरत्वं च व्याख्यातव्यम्। तथा सति सर्वेषामेव भाषाद्रव्याणामौदारिकस्कन्धप्रदेशापेक्षया प्रदेशबाहुल्याऽविशेषात्स्थूलत्वं प्रसज्येत यद्वा मनआदियोग्यस्कन्धप्रदेशापेक्षया प्रदेशस्तोकत्वाऽविशेषादणुत्वं प्रसज्येत । न चेष्टमेतदिति। अत्र च 'प्रदेशस्तोकबाहल्याऽपेक्षया' इत्यनेनाऽवगाह-क्षेत्र-कालस्थिति-वर्णगन्धरसादिस्तोकबाहल्यापेक्षया नाणत्वबादरत्वे भाषायोग्यस्कन्धानामित्यपि प्रदर्शितमिति ध्येयम।
भाषाद्रव्यों को ग्रहण करता है? आशय यह है कि-जीव जिन आकाशप्रदेशों में रहता है उन आकाशप्रदेशों में रहे हुए भाषाद्रव्यों में से जिन भाषाद्रव्यों को जीव जिन आत्मप्रदेशों से ग्रहण करता हैं वे भाषाद्रव्यस्कंध क्या उन्हीं आत्मप्रदेशों के ही आधारभूत आकाशप्रदेशों में रहते हैं या अन्य आत्मप्रदेशों के आधारभूत अन्य आकाशप्रदेशों में रहते हैं? - इस प्रश्न को हम ऐसे भी पूछ सकते हैं कि - जिन जीवप्रदेशों में अर्थात् जीवप्रदेश अवगाहित आकाशप्रदेशों में ये भाषाद्रव्य रहते हैं उनको जीव क्या उन्हीं आत्मप्रदेशों से ग्रहण करता है या अन्य व्यवहित अंतरित आत्मप्रदेशों से ग्रहण करता है?
समाधान :- जिन आत्मप्रदेशों से जीव अवगाढ भाषायोग्यद्रव्यों को ग्रहण करता है, वे भाषाप्रायोग्य द्रव्य उन आत्मप्रदेशों में = उन आत्मप्रदेशों से अवगाहित आकाशप्रदेशों में ही रहते हैं, अन्य आत्मप्रदेशों में = अन्य आत्मप्रदेशों से अवगाहित आकाशप्रदेशों में नहीं रहते हैं। आशय यह है कि जिन जीवप्रदेशावगाहित आकाशप्रदेशों में ये भाषायोग्यद्रव्य रहते हैं उनको जीव उन आत्मप्रदेशों से ही ग्रहण करता है। भिन्न आत्मप्रदेश में रहे हुए भाषाद्रव्यों को भिन्न आत्मप्रदेशों से जीव ग्रहण नहीं कर सकता है, यह तात्पर्य है। यहाँ यह बात ध्यान देने योग्य है कि विवरणकार ने 'येषु आत्मप्रदेशेषु यानि भाषाद्रव्याणि अवगाढानि' ऐसा कहा है वह उपचार से कहा है। यद्यपि आत्मप्रदेशों में तो भाषाद्रव्य अवगाहित नहीं होते है किन्तु आकाशप्रदेशों में ही भाषाद्रव्य रहते हैं तथापि आधेयभूत आत्मप्रदेशों से आधारभूत आकाशप्रदेशों के अभेद का उपचार कर के आकाशप्रदेशों को ही 'आत्मप्रदेश' कहा गया है।३। जिज्ञासा :- जीव जिन अनन्तर अवगाढ भाषाद्रव्यों को ग्रहण करता है वे क्या अणू सूक्ष्म होते हैं या बादर स्थूल होते हैं?
समाधान :- जीव जिन अनन्तर अवगाढ भाषाद्रव्यों का ग्रहण करता है वे अणु भी होते हैं और बादर भी होते हैं। अमुक भाषायोग्यद्रव्यों में अन्य भाषायोग्यस्कंध की अपेक्षा अल्प परमाणु हो तब वे भाषायोग्यद्रव्यों उन भाषायोग्यस्कंध की अपेक्षा से अणु कहे जाते हैं। जब अन्य भाषायोग्य स्कंध की अपेक्षा अमुक भाषा द्रव्यों में अधिक परमाणु हो तब वे अन्य भाषायोग्य स्कंध की अपेक्षा बादर स्थूल कहे जाते हैं। मगर भाषाद्रव्य को अन्य औदारिक आदि की अपेक्षा से या कालस्थिति आदि की अल्पता और अधिकता की अपेक्षा से किसी भाषाद्रव्य को अणु या बादर नहीं कहा जाता है। आशय यह है कि-जीव जिन भाषायोग्य द्रव्यों को ग्रहण करता है वे सभी प्रदेशों परमाणु की अपेक्षा परस्पर समान भी होते हैं और असमान भी होते हैं।४।
जिज्ञासा :- जीव जिन आकाशप्रदेशों में रहता है उन आकाशप्रदेशों के उर्ध्वभाग में ही ग्रहणयोग्य भाषाद्रव्य रहते हैं या अधोभाग में भाषाद्रव्य रहते हैं या मध्यभाग में भाषाद्रव्य रहते हैं?
* स्वावगाहक्षेत्रस्थित भाषाद्रव्य का ग्रहण * समाधान :- जीव जिन आकाशप्रदेशों में रहता है उन आकाशप्रदेशों में उपर, नीचे और मध्यभाग में ग्रहणयोग्य भाषाद्रव्य