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* अवच्छिन्नत्वपदार्थोपदर्शनम् *
नन्वत्र मृषात्वमेव, अन्यथा घटपटयोर्द्वयोः "इमौ घटौ" इति वचो मृषा न स्यादिति चेत् ? न द्वित्वावच्छिन्नत्वस्य घटाविति । एतद्वाक्यं मृषैव, तज्जन्यस्याऽभेदसंसर्गकेदम्पदोत्तरौप्रत्ययोपस्थापितद्वित्वावच्छिन्नेदम्प्रकारक-घटविशेष्यकशाब्दबोधस्य भ्रमत्वात्, पर्याप्तिसम्बन्धेन द्वित्ववति घटत्वस्याऽसत्त्वात् । परं तादृशव्युत्पत्त्यस्वीकारे तदसत्यं न स्यात्, द्वित्वेनोपस्थितयोः प्रत्येकं तादात्म्येन घटान्वयस्यांऽशेनाऽबाधितत्वादिति नन्वाशयः ।
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अहो! प्रियमिष्टमेवौषधतयोपदिष्टमित्याशयेन समाधत्ते नेति । द्वित्वावच्छिन्नत्वस्येति । व्यापकत्वं, सामानाधिकरण्यं, विशिष्टत्वं, सीमाकरणमनुकूलत्वमित्यादयोऽर्था अवच्छिन्नत्वस्य । प्रकृते च व्यापकत्वरूपमवच्छिन्नत्वं ग्राह्यमित्याह द्वित्वव्यापकत्वरूपस्येति । ततश्च द्वित्वव्यापकेदन्त्वावच्छिन्ने तादात्म्येन घटान्वयस्याभिमतत्वं प्रदर्शितम् । ननु तथापि कथमांशिकसत्यत्वमित्याह एकत्वव्यापकत्वद्वयरूपत्वेनेति । द्वित्वव्यापकत्वं चैकत्वव्यापकत्वद्वयरूपमित्यर्थः, द्वयोरेकैकस्मिन्नपि द्वित्वावच्छिन्नाधिकरणतासत्त्वादिति हेतोः । ततश्चैकत्वव्यापकेदन्ताद्वयावच्छिन्ने गाथार्थ :- प्रत्येककाय-पत्र आदि से युक्त कंद में सर्वत्र 'यह अनंतकाय है ऐसा प्रयोग अनंतमिश्रित भाषा है । ६४ । * अनंतमिश्रित सत्यमृषा भाषा - ७/३
विवरणार्थ :- पत्र आदि प्रत्येककाय से युक्त कंद-मूल आदि अनंतकाय के समूह में सर्व अवच्छेदेन यानी समूह के प्रत्येक अवयव की अपेक्षा से 'यह अनन्तकाय है' ऐसा वचन अनन्तमिश्रित भाषा है। वचन के विषयभूत अनन्तकाय प्रत्येककाय से मिश्र है। अतः इस भाषा को अनन्तमिश्रित भाषा कहते हैं। अनन्तकायिक अंश में संवादी और प्रत्येककाय के अंश में विसंवादी होने से इस भाषा को सत्यामृषा भाषा कहते हैं।
शंका :- नन्वत्र. इति। अनन्तमिश्रित भाषा को सत्यामृषा कहना ठीक नहीं है, किन्तु मृषा भाषा ही कहना चाहिए। इसका कारण यह है कि इस भाषा से सर्वावयवावच्छेदेन अनन्तकायिक का विधान होता है, जो कि बाधित ही है, क्योंकि समुदाय में प्रत्येककाय पत्र आदि होने से तादात्म्य संबंध से अनन्तकाय का अन्वय नहीं हो सकता है। यदि आप इस भाषा को संपूर्ण मृषा भाषा न मानेंगे तब तो जब भूतल में घट और पट होगा तब उनको उद्देश कर के 'इमौ घटौ' यानी 'ये दो घट हैं' यह वाक्य भी असत्य न हो सकेगा। आशय यह है कि घट और पट के समूह में 'ये दो घट हैं' यह वाक्य लोक में असत्यरूप से प्रसिद्ध है, क्योंकि पर्याप्तिसंबंध से द्वित्व के अधिकरण पुरोवर्ती पदार्थ में तादात्म्य संबंध से घट का अन्वय बाधित है। पर्याप्ति संबंध से द्वित्व संख्या का अधिकरण सिर्फ घट नहीं है, किन्तु घट-पट उभय है । मगर समूह में अन्वय न कर के समूह के देश में घट का संबंध लगाना अभिमत हो तब तो 'घट-पट उभय में 'इमौ घटौ' यह वचन भी असत्य सिद्ध नहीं हो सकेगा। अतः मानना होगा कि उद्देश्य के देश में नहीं, मगर संपूर्ण उद्देश्य में ही विधेय का अन्वय होता है। तब तो प्रत्येककाय से मिश्रित अनन्तकाय में यह वचन कि - 'यह संपूर्ण अनन्तकाय है' असत्य ही होगा, क्योंकि संपूर्ण समूह में, जो कि प्रत्येककाय से मिश्रत अनंतकाय से घटित है, भ्रमात्मक शाब्दबोध का जनक है।
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* अनंतमिश्रित भाषा में आंशिक सत्यत्व भी है*
समाधान :- न, द्वित्व. इति । ठीक ही सुना है कि थोथा चना बाजे घना । आप की बात में कुछ दम नहीं है। समाधान सुनने से पहले यहाँ एक बात ध्यान में रखनी आवश्यक है कि 'इमौ घटौ' वाक्य में द्वित्वावच्छिन्न इदं पदार्थ उद्देश्य है और घट विधेय है । निपातातिरिक्त नामार्थ का अभेद संबंध से अन्वय होता है। अतः द्वित्वावच्छिन्न इदं पदार्थ में तादात्म्य संबंध से घट का अन्वय
संबंध होता है। यद्यपि यहाँ अवच्छिन्नत्व का अर्थ विशिष्टत्व किया जाय तब द्वित्वसंख्याविशिष्ट इदं पदार्थ में अभेद संबंध से घट का अन्वय नहीं हो सकता है, क्योंकि पर्याप्तिसंबंध से द्वित्वसंख्याविशिष्ट इदं पदार्थ घट-पट उभय है जिसमें घट का तादात्म्यसंबंध से अन्वय बाधित है। तथापि यह भाषा सर्वथा मृषा नहीं है। इसका कारण यह है कि यहाँ अवच्छिन्नत्व का अर्थ विशिष्टत्व अभिमत नहीं है किन्तु व्यापकत्व अभिमत है। अर्थात् द्वित्वव्यापक इदं पदार्थ में घट का अभेदसंसर्ग से अन्त यहाँ अभिप्रेत है। इदं पदार्थ में द्वित्वव्यापकता है वह एकत्व की दो व्यापकतास्वरूप है अर्थात् घटनिष्ठ एकत्व की व्यापकता और पटनिष्ठ एकत्व की व्यापकता । ये दो व्यापकता इदंपदार्थ घट-पटोभय में रहती है। इसी तरह इदंपदार्थ में एकत्वव्यापक इदन्ताद्वय की सिद्धि होती है। एक घटनिष्ठ एकत्वव्यापक इदंता और दूसरी पटनिष्ठ एकत्वव्यापक इदन्ता अब यहाँ