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* जनपदव्यवहारसत्ययोरपि कदाचिदननुमतत्वाऽऽख्यानम् *
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"जनपद-व्यवहारसत्याश्रयणादिति चेत् ?" "स किं प्रकृते पाणिपिहितः ? इत्यत आह सति अपि जनपदव्यवहारसत्ये, इतरथा तु = विशिष्यनिर्णये एकतरप्रयोगे तु विपरिणामः स्यात् अहो! एते न सुदृष्टधर्माणः इति विरुद्धः परिणामः स्यात् गोपालादीनामपि । तत्तज्जनपदसङ्केतमात्र प्रयुक्तार्थप्रत्यायकत्वाभावात्कथं जनपदसत्यत्वमिति यदि परो ब्रूयादिति मनसिकृत्य कल्पान्तरमाह व्यवहारसत्येति । प्रस्तरादावेकेन्द्रियत्वेन नपुंसकत्वे सत्यपि पुरुषाद्यभेदविवक्षया पुरुषत्वादिप्रतिपादनस्य व्यवहारसत्यत्वमेवेति भावः । व्युत्पन्नस्य प्रत्युत्तरं प्रतिक्षिपति स इति व्यवहारसत्यत्वंप्रत्त्युत्तरः प्रकृते = गोबलिवर्दाद्यनिश्चयदशायामेकतरप्रयोगे पाणिपिहितः ? इति । समसमाधानमुभयत्रेति नन्वाशयः ।
श्रोतुमिथ्याध्यवसायनिरासार्थमुभयसाधारणधर्मः प्रतिपादयितव्य इत्याशयेन ननुमतं निराकरोति सत्यपीति । न सुदृष्टधर्माण इति । स्त्रीत्वादिकं लौकिकमपि धर्मं न प्रेक्षन्ते किमुतालौकिकं पारत्रिकहितावहं धर्ममित्याशयः । तदुक्तं' चूर्णौ - 'आह जति एवं तो कम्हा एगिंदियविगलिंदिएसु सइ णपुंसगभावे इत्थिणिद्देसो पुरिसणिद्देसो य दीसइ ? तत्थ एगिदिएस पुढविक्काए पासाणे पुरिसणिद्देसो, जा सा मद्दिया इत्थिणिद्देसो, आउक्काएवि करओ पुरिसणिद्देसो उस्सा इत्थीणिद्देसो, अग्गिकाए वि अग्गी पुरिसणिद्देसो जाला इत्थिणिद्देसो, वाउक्काए वि वाओ पुरिसणिद्देसो वाउला इत्थिणिद्देशो, वणस्सइकाए वि पुरिसणिद्दसो जहा णग्गोहो उनिरो इत्थिणिद्देसोऽवि जहा सिंसवा अंबिलिया पाडला एवमायि । बेइंदिए पुरिसणिद्देसो जहा संखो संखाणओ इत्थिणिद्देसो जहा असुगा सिप्पा एवमादि, तेइंदिएसु पुरिसणिद्देसो जहा मक्कोडा इत्थिणिद्देसो जहा उवचिका पिपीलिका एवमादि चउरिंदिएस पुरिसणिद्देसो जहा भमरो
एकेन्द्रिय
विकलेन्द्रिय
पृथ्वीका
अप्काय
तेउकाय
वायुकाय
वनस्पतिकाय
द्वीन्द्रिय
त्रीन्द्रिय
=
31:
पुंलिंग
पत्थर
पानी, जल
मुर्मुर, तेज
वात, पवन
आम्र, पेड
शंख
खटमल
स्त्रीलिंग
मिट्टि
उस्सा (अवश्याय), बारिस
ज्वाला
हवा
अंबिया, इमली
शुक्ति, सीपी पिपीलिका, चींटी
चतुरिन्द्रिय
माख, मधुकर, भ्रमर
मक्खी, मधुकरी
उपर्युक्त दृष्टांत पर ध्यान देना आवश्यक है। नपुंसक होने पर भी पुलिंग और स्त्रीलिंग का प्रयोग एकेन्द्रिय और विकलेन्द्रिय प्रसिद्ध है। ताज्जुब की बात तो यह है कि अमुक भाषा के शब्दों में नपुंसकलिंग होता ही नहीं है जैसे कि हिन्दी भाषा । फिर भी पुंलिंग या स्त्रीलिंग के प्रसिद्ध प्रयोग दीखाई देता है। आपकी दृष्टि से तो उन प्रसिद्ध प्रयोगों की उपपत्ति = घटना कैसे होगी? क्योंकि तादृश प्रयोग आपके कथन के अनुसार असत्य सिद्ध होते हैं ।
शंका :- जनपद इति । एकेन्द्रिय और विकलेन्द्रिय नपुंसक होने पर भी देशविशेष की अपेक्षा से उनमें पुंलिंग या स्त्रीलिंग शब्द की प्रवृत्ति तत्तद्देश में होने से वह भाषा जनपदसत्य भाषा है। देखिए हिन्दी भाषा की जिस देश में प्रवृत्ति होती है, उस देश में एकेन्द्रियादि में हिन्दी भाषा के द्वारा पुलिंगादि शब्दो की प्रवृत्ति जनपद सत्यभाषास्वरूप है। या तो हम यह भी कह सकते हैं कि एकेन्द्रिय आदि में पुंलिंग आदि शब्दों की प्रवृत्ति लोकप्रसिद्ध और लोकविवक्षा से घटित होने के सबब वह भाषा व्यवहारसत्य भाषारूप है। पूर्व में व्यवहारसत्यभाषा के निरूपण के प्रसंग में ३१ वीं गाथा के विवरण के प्रान्त भाग में भी आमलकी आदि स्त्रीलिंगवाचक शब्दों की एकेन्द्रिय में प्रवृत्ति व्यवहारसत्य भाषारूप बतायी गई है। अतः पत्थर मृत्तिका आदि पुंलिंग स्त्रीलिंग के
१ मुद्रितप्रतौ 'सत्यम्' इति । २ दृश्यतामेतत्प्रकरणस्य ३१तमगाथाया वृत्तिः १२२ तमे पुटे ।