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३०० भाषारहस्यप्रकरणे स्त. ५. गा. ८९ ● अधिकरण लाघवादिदोषपोषकभाषणस्य त्याज्यत्वम् ० आप्तवचनात्तदानीं गोदोहादिकर्तव्यत्वनिश्चये श्रोतृप्रवृत्त्यादिना अधिकरणलाघवादिदोषप्रसङ्गात् ।
दिगुपलक्षणादौ प्रयोजने पुनः, तदर्थकानि = दोह्याद्यर्थकानि, सिद्धानि = साध्यविलक्षणानि, विशेषणानि वदेत्, यथा' रसदा धेनुः, युवा गौः, हस्वो महल्लकः संवहनो वे 'ति । नैवमुक्तदोष इति भावः । । ८९ ।। किञ्च
समत्था' इत्युक्तम्। रथयोग्या इति । चूर्णौ - 'रथजोग्गा णाम अहिणवजोव्वणत्तणेण अप्पकाया, ण ताव बहुभार समत्था किंतु संपयं रहजोग्गा एते त्ति' इत्युक्तम् । प्राचीनतमचूर्णौ तु 'सिग्घगतयो सदप्पा जुग्गादिवधा रहजोग्गा' इत्युक्तम् । जुग्गादिवधा इति युग्यदिवहा इत्यर्थः । गोदोहादिकर्तव्यत्वनिश्चये इति । 'गोः विभागावच्छिन्नक्षरणानुकूलव्यापाररूपं दोहनं मत्कर्त्तव्य' मित्याकारकनिश्चये जाते सतीत्यर्थः ।
दिगुपलक्षणादाविति । आशाप्रदर्शनादावित्यर्थः । आदिशब्देन जिनालयज्ञापनादेर्ग्रहणम् । साध्यविलक्षणानीति । निष्पन्नक्रियार्थबोधकानीति यावत् । दोह्या गौरित्यस्य स्थाने रसदा धेनुः, दम्यो गौरित्यत्र "युवा गौः', गोरथक इत्यत्र ह्रस्वः, वाह्य इत्यत्र महल्लकः, रथयोग्य इत्यत्र संवहन इति ब्रूयात् । दशवैकालिकदीपिकाकारः 'संवहनं धुर्यम्' (द.वै.दी. ७ / २५) इत्याह । नैवमुक्तदोष इति । श्रोतुः तथावचनतः साक्षात् इतिकर्तव्यत्वभानाभावेन नाधिकरणादिदोष इत्यर्थः । । ८९ ।।
'बैल दम्य है' यह बताया है। दम्य का अर्थ है दमन करने योग्य । दम्यशब्द का दूसरा अर्थ 'बधिया करने योग्य = नपुंसक करने योग्य' - यह होता है। इस वाक्य को साधु के मुँह से सुन कर बैल के स्वामी सावद्य क्रिया में प्रवृत्त होते हैं और अन्य लोगो को यह महसूस होता है कि क्या साधु भगवंत यह भी बोल सकते हैं कि यह बधिया करने योग्य है?' और साथ ही साधु भगवंत के प्रति असद्भाव होता है, जिनशासन की लघुता होती है। तीसरा उदाहरण है यह गोरथक है' रथ की भाँति दौडनेवाला बैल, तीन वर्ष का बैल, जो रथ में जुत गया वह बैल इत्यादि अर्थ गोरथक शब्द के होते है। श्रीहरिभद्रसूरिजी महाराज ने गोरथक का अर्थ कल्होड किया है जिसका अर्थ वत्सतर होता है। बछडे से आगे की और संभोग में प्रवृत्त होने की पूर्व अवस्थावाले बैल को वत्सतर कहा जाता है। चतुर्थ उदाहरण है 'ये बैल वाह्य हैं'। श्रीजिनदासगणी ने वाह्य का अर्थ किया है बैलगाडी का भार ढोने में समर्थ । पाँचवाँ उदाहरण ये रथयोग्य हैं यह बताया गया है। इसका मतलब यह है कि 'अभिनव युवा होने की बदौलत यह बैल बहुत भार ढोने में समर्थ नहीं है, अल्पकाय है। अतएव यह रथयोग्य है। हम समझ सकते हैं कि प्रदर्शित वाक्यों के प्रयोग से सावद्य क्रिया प्रवृत्त होती है और लोगों को भी महसूस होता है कि साधु भगवंत को जबान पर लगाम नहीं है'। अतः तादृश वचनप्रयोग अकर्तव्य है ।
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* अधिकरणादि दोष से मुक्त वचन प्रयोक्तव्य *
दिगुप. इति । यदि साधु भगवंत को दिशा या मार्ग बताना या पहचानना आदि प्रयोजन उपस्थित हो तब 'रसदा गौः' इत्यादि शब्दों का प्रयोग करना चाहिए, जिसमें विशेषण साध्यक्रिया का सूचक नहीं होता है किन्तु साध्य क्रिया से विलक्षण क्रिया का प्रदर्शक होता है। 'गाय दुहने योग्य है' जैसे सावद्य क्रिया में प्रवर्तक है वैसे यह दूधार गाय है' यह वाक्य सावद्य क्रिया में प्रवर्त्तक नहीं है यह तो हम स्पष्टरूप से जान सकते हैं। किन वाक्यों का प्रयोग करना चाहिए और किन वाक्यों का नहीं? यह बात निम्नोक्त कोष्टक पर गौर से निगाह फैलाने से पाठकों को मालुम हो जायेगी । देखिए
परिहार्य
आवश्यकता होने पर अपरिहार्य
गाय दुहने योग्य है
गाय दूधार है।
बैल दम्य है
बैल युवा है।
बैल जोतने योग्य है
बैल छोटा है।
बैल वाह्य है
बैल महाकाय है।
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बैल रथयोग्य है
बैल संवहनयोग्य है ।
१ जुवं गवो नाम जुवाणगोणोत्ति, चउहाणगो वा (द. वै. जि . चू. पृ. २५४) ।
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