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* भावभाषाप्रतिपादनम् *
___५५ हेतुना तदा क्रियारूपभावभाषाया एव निषेधादित्याकलयामः ।।१२।। अथ भावभाषामाह
उवउत्ताणं भासा णायव्वा एत्थ भावभासत्ति। उवओगो खलु भावो णुवओगो दव्वमिति कट्ठ।।१३।।
अत्र = भाषानिक्षेपप्रक्रमे, उपयुक्तानां = 'इदमित्थं मया भाषितव्यम्, इत्थमेव भाष्यमाणं श्रोतृपरिज्ञानाय भविष्यती'त्यादि सम्यगुपयोगशालिनां; भाषा भावभाषेति ज्ञातव्या, 'कुतःइत्याह, खल्विति निश्चये उपयोगो भावोऽनुपयोगश्च द्रव्यमिति कृत्वा।
ननु भिन्नभाषाद्रव्याणां निसर्गोत्तरकालमपि शब्दपरिणामयुक्तत्वात्किमिति 'ण पुलिं भाषा ण भासासमयवितिक्कंता भासा' इति निषेधः कृत इत्याशङ्कायामाह 'शब्दार्थवियोगादिति' = भाष्यमाणत्वाभावादित्यर्थः, कण्ठताल्वाद्यभिघातजन्यशब्दोत्पादकव्यापाररूपभाषाशब्दार्थशून्यत्वादिति यावत्। 'एवेति। अनेन शब्दपरिणामरूपभावभाषाया व्यवच्छेदः सूचितः। 'भाष्यमाणैव भाषे'ति वचनाच्छब्दपरिणामरूपभावभाषाया निसर्गानन्तरसमये निषेधो न क्रियते किन्तु निसरणक्रियारूपभावभाषाया इति गूढार्थः ।।१२।।
अथेति। अनेनाऽवसरसङ्गतिप्रदर्शनात्पूर्वोत्तरग्रन्थयोरेकवाक्यताप्रतिपत्तिः प्रदर्शिता । 'उपयोग'- इति। भावजन्यभाषायां कार्ये कारणोपचाराद् भावभाषाव्यपदेशो व्यवहारनयेनेति ध्येयम्। 'भवइ' इति धातूनामनेकार्थत्वादुत्पद्यत इत्यर्थः ।
ननु भाषायाः कण्ठताल्वाद्यभिघातेन जन्यत्वात्कथमभिप्रायात्मकोपयोगजन्यत्वमित्याशङ्कायामाह - 'जो' इति । व्यक्तम्। इस तरह १२वीं गाथा में ग्रहणादि तीन भाषा भावभाषा का कारण होने से द्रव्य भाषा नहीं है, किन्तु द्रव्यप्रधानता की विवक्षा से ही द्रव्यभाषा है - यह 'भाष्यमाण भाषा' इत्यादि तीन सिद्धांत की अनुपपत्ति के बल पर सिद्ध किया है और साथ साथ द्रव्यभाषा के वक्तव्य को प्रकरणकार ने जलांजलि दी है।।१२।।
इस तरह दूसरी गाथा से १२वीं गाथा तक नोआगम से तद्व्यतिरिक्त द्रव्यभाषा का निरूपण पूर्ण हुआ। अब अवसर प्राप्त भावभाषा का १३वीं गाथा से प्रकरणकार निरूपण करते हैं।
गाथार्थ :- यहाँ -'उपयोगवाले जीवों की भाषा भावभाषा है' - यह जानना चाहिए, क्योंकि उपयोग ही भाव है, अनुपयोग तो द्रव्य है।१३।
भावभाषा का प्रतिपादन विवरणार्थ :- भाषा के निक्षेप के प्रसंग में भावभाषा को कैसे जाना जाए? इस समस्या का समाधान यह है कि - उपयोगवाले जीवों की भाषा भावभाषा है। यहाँ खाने, पीने, गाने के उपयोग नहीं लेने हैं, किन्तु भावभाषा के प्रसंग से, "मुझे यह इस तरह बोलना चाहिए, मैं ऐसा बोलूँगा तभी श्रोता को अर्थज्ञान हो सकेगा" ऐसा उपयोग प्रणिधान लेना है और इस उपयोग से वक्ता बोले तब उसकी भाषा भावभाषा कही जाती है। आशय यह है कि बुद्धिमान् वक्ता जब श्रोता को अपने इष्ट अर्थ का बोध कराने के लिए नियत शब्दों का नियतरूप से उच्चारण करता है और तभी श्रोता को वक्ता के तात्पर्य के विषयभूत अर्थ का ज्ञान होता है, अन्यथा नहीं। जैसे कि घटशब्द की शक्ति कम्बुग्रीवादिमान् घटपदार्थ में है। अतः वक्ता जब श्रोता को घटअर्थ का बोध कराने के तात्पर्य से 'घट' शब्द को बोलता है तब इसको सुन कर श्रोता को घटअर्थ का बोध होता है। यहाँ वक्ता "घटशब्द से इसको घटअर्थ का बोध हो" - इस उपयोग से घटशब्दोच्चारण करता है। अतः यह भावभाषा है। उपयोग को शास्त्र में भाव कहा गया है और अनुपयोग को द्रव्य । अतः उपयोगात्मक भाव से प्रयुक्त होने से, कार्य में कारण का उपचार कर के इस भाषा को भी भावभाषा कहते
हैं।
'तदिदम'. इत्यादि। विवरणकार वाक्यशुद्धिचूर्णि का पाठ बता कर उपर्युक्त बात का ही समर्थन करते हैं। वाक्यशुद्धिचूर्णिवचन का अर्थ यह है कि - "जिस अभिप्राय से भाषा उत्पन्न होती हैं वह भाषा भावभाषा होती है। अर्थात् अभिप्रायजन्य भाषा भावभाषा
१ उपयुक्तानां भाषा ज्ञातव्याऽत्र भावभाषेति। उपयोगः खलु भावोऽनुपयोगो द्रव्यमिति कृत्वा ।।१३।।