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* द्वैपायनोदाहरणम् *
. १६७ अपायोपाय-स्थापना-प्रत्युत्पन्नविन्यासभेदात्। तत्राऽपायः = अनिष्टप्राप्तिः, तद्विषयमुदाहरणं = अपायोदाहरणम्। स च चतुर्द्धा, द्रव्यापायः क्षेत्रापायः कालापायो भावापायश्चेति।
तत्र द्रव्यापाये धननिमित्तं परस्परवधपरिणतौ द्वौ भ्रातरावुदाहरणम् । क्षेत्रापाये दशारवर्गः। कालापाये द्वैपायनः। भावापाये च __द्वौ भ्रातरौ इति । अत्रोदाहरणादिकं स्थानाङ्गवृत्ति-दशवैकालिकचूर्णि-वृत्त्याद्यनुसारेणाऽस्माभिः प्रदर्श्यते। द्रव्यापायो देशान्तरगमनेनोपार्जितद्रविणयोस्तल्लोभात् परस्परमारणपरिणतयोः स्वग्रामाबहिःप्राप्तावनुतापात् हृदत्यक्तमत्स्यगिलिततद्वित्तयोर्मत्स्यबन्धकपार्थात् गृहितस्य तस्य मत्स्यस्य विदारणेऽवाप्ततद्रव्यलुब्धभगिन्या मत्स्यच्छेदकशस्त्राभिघातेन तदुद्दालनप्रवृत्तमारितमातृकायास्तथाविधव्यतिकरदर्शनोत्पन्नसंवेगात्प्रतिपन्नप्रव्रज्ययोर्भ्रातृवणिजयोरिव, तत्परिहारश्च प्रव्रज्यया तत्त्यागादिति। आहरणता चाऽस्य देशेनोपनयस्याऽविवक्षणादिति। क्षेत्रापाय इति। क्षेत्रात्क्षेत्रे क्षेत्रमेव वाऽपायः । एवमुत्तरत्राऽपि भावना कार्या। द्रव्यापायाहरणं लौकिकं क्षेत्राद्यपायाहरणानि च लोकोत्तराणीति भाति।
दशारवर्गः । अत्र महती कथा. औपयोगिकमेव भण्यते-कंसे विनिपातिते सापायं क्षेत्रमेतदिति कृत्वा जरासयभयेन दशारवर्गो मथुरातोऽपक्रम्य द्वारवतीं गत इति। एवं साधुनाऽपि अशिवादिनिस्तरणार्थं क्षेत्रापायः कार्य इत्युपनयोऽत्र। द्वैपायनः, तद्यथा कृष्णपृष्टेन भगवताऽरिष्टनेमिना व्याकृतम् - 'द्वादशभिः संवत्सरैद्वैपायनाद द्वास्वतीनगरीविनाशः। उद्योततरायां नगर्यां परम्परकेण श्रुत्वा द्वैपायनपरिव्राजको 'मा नगरी विनाशयिष्यामी'ति कालावधिमन्यत्र गमयामी ति उत्तरापथं गतः। सम्यक्कालमानमज्ञात्वा द्वादशे चैव संवत्सरे आगतः, कुमारैरुपसर्गितः कृतनिदानो देव उत्पन्नः ततश्च नगर्यामपायो जात इति । उपनयश्चाऽत्र द्वैपायनवत् सापायकालवर्जने यतितव्यम् ।
* आहरण के चार भेद * . आहरण का अर्थ है प्रस्तुत में उपयोगी संपूर्ण दृष्टान्त । इस आहरण के चार भेद हैं (१) अपाय आहरण, (२) उपाय आहरण, (३) स्थापना आहरण, (४) प्रत्युत्पन्नविन्यास आहरण । अब लीजिये प्रारंभ में अपाय आहरण को। अपाय का मतलब है - अनिष्ट की प्राप्ति । अनिष्टप्राप्तिरूप अपायविषयक जो उदाहरण होता है वह अपायाहरण कहा जाता है। अपायआहरण के भी चार भेद हैं (१) द्रव्यअपायविषयक आहरण, (२) क्षेत्रअपायविषयक आहरण, (३) कालअपायविषयक आहरण, (४) भावअपायविषयक आहरण | द्रव्य के निमित्त से जिस अनिष्ट की प्राप्ति होती है उसका प्रतिपादक आहरण द्रव्यअपायविषयक आहरण कहा जाता है। द्रव्यअपायविषयक आहरण में दो भाइयों का उदाहरण प्रसिद्ध है। धनरूपी द्रव्य के निमित्त से दो भाई एक-दूसरे को मारने को तैयार हो गये थे।
* अपाय आहरण १/१ * क्षेत्र अपाय में दशारवर्ग का उदाहरण संक्षेप में इस तरह है कि, कंस का वध होने पर जरासंघ प्रतिवासुदेव के भय से दशारवर्ग मथुरा को सापाय क्षेत्र जान कर द्वारिका की और चला था। कालापाय में द्वैपायन का उदाहरण संक्षेप में इस तरह है कि श्रीनेमिनाथ भगवंत ने कहा कि-१२ साल बाद द्वैपायन से द्वारिका नगरी का नाश होगा। यह परंपरा से सुन कर द्वैपायन अपायवाले द्वारिका क्षेत्र को १२ साल तक छोडने का निश्चय कर के चला गया। इस तरह अपायवाले काल को जान कर छोडना चाहिए - यह तात्पर्य है। भाव अपाय में मंडूकिकाक्षपक का उदाहरण है। वह मंडूकिकाक्षपक कूरगडुमुनि का जीव था। क्रोधस्वरूप भाव अपाय से क्या नुकशान होता है? यह इस उदाहरण से ज्ञात होता है। अतः क्रोधादि भाव अपाय को छोडना चाहिए - यह द्रष्टांत का तात्पर्य है। यह दृष्टांत मोक्षरत्ना में चूर्णि के अनुसार विस्तार से बताया गया है। ये कथानक श्रोताओं को संवेग की प्राप्ति हो और सम्यग्दर्शन, देशविरति, सर्वविरति आदि में स्थिरता प्राप्त हो- इस आशय से बताये जाते हैं। ये द्रव्यादि अपाय के
१ विवरण में ये उदाहरण या तो संक्षेप में बताये गये हैं या तो सिर्फ नामनिर्देश से बताये गये हैं। इन दृष्टांतों का विस्तार से निरूपण दशवैकालिकचूर्णि-दशवैकालिकहारिभद्रवृत्ति आदि में प्राप्य है। जिज्ञासु वर्ग वहाँ देख सकते हैं। यहाँ मोक्षरत्ना टीका में प्रायः सब दृष्टांत चूर्णि आदि के अनुसार बताये गये हैं।