Book Title: Bhasha Rahasya
Author(s): Yashovijay Maharaj, 
Publisher: Divyadarshan Trust

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Page 250
________________ * सत्यामृषाभाषानिरूपणम् * २१९ तृतीयः स्तबकः प्रतिज्ञातनिरूपणाया एव सत्यामृषाभाषाया लक्षणपूर्व विभागमाह 'अंसे जीसे अत्थो विवरीओ होइ तह तहारूवो। सच्चामोसा, मीसा, सुअंमि परिभासिआ दसहा।।५६ ।। उप्पन्न-विगय-मीसग, जीवमजीवे अ जीवअज्जीवे । तहणंतमीसिया खलु, परित्त अद्धा य अद्धद्धा ।।५७।। यस्या भाषायाः, अर्थः = विषय, अंशे = देशे, विपरीतः = बाधितसंसर्गो भवति, तथा = पुनः, तथारूपः = अबाधितसंसर्गो भवति, तच्छब्दस्य यच्छब्देनाऽऽक्षेपात्, सा सत्यामृषा श्रुते मिश्रेति परिभाषिता, सत्यत्वेन स्वरूपत आराधकत्वात्, असत्यत्वेन व्याख्यायाऽसत्यभाषां मिश्रभारती प्रतन्यते। व्यवहारनयाऽऽलम्बिप्रज्ञयैव यथागमम् ।।१।। लब्धावसरः श्रीमन्न्यायाचार्यों हि सत्यामृषालक्षणाद्युपोद्धातमाह प्रतिज्ञातेति। आक्षेपादिति। लाभादित्यर्थो न तु समानवित्तिवेद्यत्वरूपमाक्षेपत्वमत्र ग्राह्यम् । पूर्वोक्तेन यस्याइतिपदेनाऽनुपदमेव त्यमाणस्य सेतिपदस्य लाभो यत्तत्पदयोः परस्परं साकाङक्षत्वात। एतेन निराकांक्षशाब्दबोधोपपत्तिः सेतिपदे स्वच्छन्दमतिप्रविष्टत्वकल्पनापरिहारश्च कृतो भवति। सत्यामृषेति। उद्देश्यतावच्छेदकसामानाधिकरण्येन बाधिताबाधितसंसर्गकविधेयप्रकारकशाब्दबोधजनकवचनत्वं सत्यामृषालक्षणमिति फलितम्। न चासत्यायामतिव्याप्तिरिति वाच्यम् शुद्धव्यवहाराभिमताया तस्या उद्देश्यतावच्छेदकावच्छेदेन बाधितसंसर्गकशाब्दधीजनकत्वात्। मिश्रेति परिभाषितेति। इदञ्च लक्षणान्तरम्, उपधेयसाङ्कर्येऽप्युपाध्योरसाङ्कर्यात् न दोषः व्यवहर्तव्याभेदेऽपि अब ग्रंथकार द्रव्यभावभाषा के तृतीयभेद सत्यामृषा भाषा का निरूपण करने की प्रतिज्ञा कर रहे हैं। जिसके निरूपण की प्रतिज्ञा कि गई है, उस सत्यामृषा भाषा का लक्षण बता कर उसीका विभाग ग्रंथकार श्रीमद् ५६-५७वीं गाथा से बताते हैं। * मिश्र भाषा लक्षण और भेद * गाथार्थ :- जिस भाषा का विषय एक अंश में विपरीत हो और अन्य अंश में तथारूप = अविपरीत हो वह भाषा सत्यामृषा है। वह आगम में मिश्रभाषा रूप से परिभाषित है जिसके भेद दश हैं। ।५६ ।। गाथार्थ :- (१) उत्पन्नमिश्रित, (२) विगतमिश्रित, (३) उत्पन्नविगतमिश्रित, (४) जीवमिश्रित, (५) अजीवमिश्रित, (६) जीवाजीवमिश्रित, (७) अनंतमिश्रित, (८) प्रत्येकमिश्रित (९) अद्धामिश्रित, (१०) अद्धाद्धामिश्रित - ये दश भेद मिश्रभाषा के हैं।५७ । विवरणार्थ :- गाथा में 'जीसे' पद है जिसकी छाया संस्कृत में 'यस्याः' होती है, जो यत् पद का षष्ठीविभक्ति स्त्रीलिंग एकवचन में रूप है। यत् शब्द से तत्शब्द का आक्षेप = लाभ होता है, क्योंकि यत् शब्द तत्शब्दसापेक्ष है। सापेक्षशब्द का लाभ न हो तब अर्थबोध या वाक्यार्थज्ञान नहीं हो सकता है। अतः प्रस्तुत में भाषाशब्द स्त्रीलिंग होने से तत् पद का स्त्रीलिंग प्रथमाविभक्ति में 'सा' ऐसा रूप बनता है - इसका लाभ होता है। तब अर्थ यह निष्पन्न होगा कि - जिस भाषा का विषय एकदेश में १. एवमसत्या भाषा निरूपिता प्रवचनस्य नीत्या। सत्यामृषां भाषां, अतः परं कार्त्तयिष्यामि ।।५५।। २. अंशे यस्या अर्थो विपरीतो भवति तथा तथारूपः। सत्यामृषा मिश्रा श्रुते परिभाषिता दशधा ।।५६ ।। ३. उत्पन्नविगतमिश्रके जीवेऽजीवे च जीवाजीवे। तथाऽनन्तमिश्रितां खलु, प्रत्येकाद्धायां चाद्धाद्धायाम् ।।५७।।

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