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* उभयीये एकीयत्वाऽसमर्थनम *
२३१ "स जीवमिस्सिया खलु ज भन्नइ उभयसिविसय वि। वज्जितुविसयमन्नं एसो बहुजीवरसि त्ति।।६१।।
सा खलु जीवमिश्रिता या (ग्रन्थाग्रम्-श्लो.७००) उभयराशिविषयाऽपि = जीवाजीवसमूहविषयाऽपि, अन्यं = अजीवाख्यं, विषयं वर्जयित्वा एष बहुः जीवराशिरिति भण्यते। अत्र हि जीवांशे सत्यत्वमजीवांशे चासत्यत्वम् । न च बहुषु जीवत्सु शङ्खादिष्वल्पेषु च मृतेषु 'महानयं जीवराशिः' इत्यभिधाने जीवप्राधान्यविवक्षणान्न दोषः, बाहुल्येन प्रयोगोपलम्मादिति वाच्यम् एवं हि प्रयोगसमर्थसत्यासत्यत्वमित्यादि पूवोक्तदिशाऽनुसन्धेयम् ।। ६० ।।
जीवांशे सत्यत्वमजीवांशे चासत्यत्वमिति। जीवांशे संवादेन प्रमाजनकत्वात्सत्यत्वस्याजीवांशे च विसंवादेन भ्रमजनकत्वादसत्यत्वस्य सत्त्वात्सत्यासत्यत्वमिति भावः। न दोष'इति। पुरोवर्तिनि विधेयस्य जीवप्राधान्यस्याऽबाधान्नांशिकभ्रमजनकत्वेनांशिकमृषात्वमपि तु सत्यत्वमेवेति शंकाकाराशयः । ___ पराभिप्रायं नयमतभेदेनाङ्गीकृत्य नयान्तराभिप्रायेण मिश्रत्वं समर्थयति एवं हि प्रयोगसमर्थनेऽपीति। भूयस्तथाविधप्रयोगोपलम्भोन्नीतं विधेयतया जीवप्राधान्यमादाय तथाविधप्रयोगसत्यत्वसमर्थनेऽपीत्यर्थः। अपिशब्दो विशेषद्योतनार्थः। तदेव प्रदर्शयति उभयीयसमूहे एकीयत्वासमर्थनादिति। परस्परनिरपेक्षाणामनेकेषामेकस्मिन्नन्वयरूपेऽपेक्षाबुद्धिविशेषविषयरूपे वा जीवाजीवघटितसमूहे जीवघटितत्वस्याऽजीवघटितत्वस्य वाऽसमर्थनादिति । ननूभयघटितसमूहस्यैकघटितत्वं स्वीकर्तव्यमेव, अन्यथा उभयघटितत्वमेव न स्यात् प्रत्येकाघटितस्योभय
* जीवमिश्रित भाषा ४/३ * विवरणार्थ :- जीव और अजीव के समूह में अजीव को छोड कर 'यह अनेक जीवों का समूह है' इत्यादि जो कहा जाता है वह जीवमिश्रित भाषारूप हैं। इस भाषा को मिश्र कहने का तात्पर्य यह है कि - समूह में जितने जीव हैं उस अंश में यह भाषा संवादी होने से सत्य है तथा अजीव अंश में विसंवाद होने से असत्य है। मतलब कि अपने विषयभूत समूह के एक देश में प्रमाजनकत्व और अन्य अंश में भ्रमजनकत्व होने से यह भाषा सत्यामृषा कही जाती है। अजीव से मिश्रित ऐसे जीव इस भाषा के विषय होने से इस भाषा को जीवमिश्रित कहते हैं। ___ शंका :- न चेति । शंखसमुदाय को, जिसमें अनेक शंख जीवंत है और अल्प शंख मृत है, उद्देश बना कर कहना कि 'यह जीवों का बडा समूह है' यह भाषा तो निर्दोष ही है, क्योंकि यहाँ वक्ता का तात्पर्य जीवप्राधान्यप्रतिपादन का है। लोकव्यवहार में प्रायः ऐसे अनेक प्रयोग देखे जाते हैं। जिसके कारण उपर्युक्त प्रयोग का तात्पर्य समूह में जीवप्राधान्य का है - यह ज्ञात होता है। जीवों की मुख्यताप्रधानता तो अनेक जीवंत शंखों के समूह में अबाधित ही है। अतः यह भाषा आंशिक भी मृषा नहीं हैं, सर्वथा सत्य ही है। तब इस भाषा का सत्यामृषा भाषा में प्रवेश करना कैसे उचित होगा?
समाधान :- एवं हि. इति। आपकी यह शंका दो कौड़ी की है। इसका कारण यह है कि - आप इस तरह जीवप्राधान्य की विवक्षा से प्रस्तुत वाक्य का समर्थन कीजिए फिर भी जीव और अजीव के समूह में 'यह जीवसमूह है' इसका यानी समूह में जीवसंबंधित्व का समर्थन नहीं हो सकता है। अतः यह भाषा सर्वांश में सत्य सिद्ध नहीं हो सकती है।
* उभय प्रत्येकसंबंधी है, प्रतिनियत एकव्यक्तिसंबंधी नहीं * उभयीयस्य. इति । यहाँ शंका करना कि - "जो उभय का समूह है वह एक का संबंधी तो जरूर होगा ही, अन्यथा वह उभय का समूह ही नहीं हो सकेगा। आशय यह है कि जीव और अजीव का समूह जीव का समूह तो होगा ही। अतः जीवसंबंधित्व तो उभय के समूह में भी अबाधित ही है। समूह में जीव-अजीवसम्बन्धित्व होने से ही जीवसंबंधित्व की सिद्धि हो जाने से-समूह में जीवसंबंधित्व की सिद्धि नहीं होगी - यह कहना कैसे उचित होगा?" - भी उचित नहीं है। इसका कारण यह है कि उभय से घटित समूह एक से घटित तो है ही मगर वह प्रतिनियत एकसम्बन्धी नहीं होता है। अर्थात् जीव और अजीव के समूह में सिर्फ जीवसंबंन्धित्व नहीं हो सकता है, क्योंकि वैसे तो समूह में सिर्फ अजीवसम्बन्धित्व की सिद्धि करने में भी कोई बाधा नहीं होगी। समूह उभयघटित होने से अजीवघटित भी है ही। अतः यहाँ प्रतिनियत एकसम्बन्धित्व की सिद्धि दुर्घट है। प्रतिनियत एकसंबंधित्व
१. सा जीवमिश्रिता खलु या भण्यते उभयराशिविषयाऽपि। वर्जयित्वा विषयमन्यमेषो बहुजीवराशिरिति ।।६१।।