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[१] आड़ाई : रूठना : त्रागा
अपने यहाँ तो क्लेश खड़ा हो जाता है। फिर भी ये स्त्रियाँ ऐसा नहीं करतीं। ये तो आर्य संस्कारी स्त्रियाँ हैं! फॉरेन में ऐसा चल जाता है। फॉरेन में तो मुँह चढ़ाकर हीरे दिए जाएँ न, तो कहेगी, 'अरे भले ही चीखे-चिल्लाए। हमें तो हीरे मिल गए न!' और यहाँ पर ऐसा नहीं चलता। ये तो आर्य सन्नारियाँ कहलाती हैं। आपको कैसा लगता है?
प्रश्नकर्ता : ठीक है।
दादाश्री : इसलिए हम यदि घर पर मुँह न चढ़ाएँ तो वह हीरे से भी ज़्यादा है न?
छोटा बच्चा भी रुपये नहीं छुने देता। कहेगा, 'ये तो मेरे रुपये हैं. लाओ।' एक चीज़ में सरल होता है, तब दूसरी जगह पर आड़ाई रहती है। जब तक वह आड़ाई नहीं निकले, तब तक छूटा नहीं जा सकता। आड़ाई जाए तो भगवान बन जाए, ऐसा पद है, यह जगह ऐसी है। 'दादा' आड़ाई-शून्य हो चुके हैं!
हर एक व्यक्ति की आड़ाई अलग-अलग प्रकार की होती है। आप जिसे आड़ाई कहते हों, आपकी वह आड़ाई आपको नहीं दिखाई देती। आपकी आड़ाई आपको दिखाई दे तब तो आप भगवान बन जाओगे। जब खुद को खुद की आड़ाई दिखने लगे, वह भगवान बन जाता है। अभी तक आपकी आड़ाई आपको कहाँ दिखाई देती हैं ? वर्ना आप भगवान बन जाओगे।
बाधक मात्र आड़ाईयाँ ही
इसलिए सीधा होने की ज़रूरत है। देखो मैं सीधा हो गया हूँ, तो है कोई झंझट? कितने ही जन्मों से मार खा-खाकर मैं सीधा हो गया हूँ। कोई आड़ाई ही नहीं है न अब। आप कहो कि, 'नीचे चलिए' तो नीचे चले जाते हैं। हममें आडाई नाम मात्र को भी नहीं है। फिर भी अगर कोई कहे कि, 'आप ऐसे हो, वैसे हो।' लेकिन वह तो 'जो' ऐसा है, उसी को वे कहते हैं। मैं उसे गलत भी नहीं कहूँगा कि तू गलत है