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[६] लघुतम : गुरुतम
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खुद का मालिक है न?! उसकी मालिकी के 'टाइटल' उसके खुद के हैं। हम उसकी टीका कैसे कर सकते हैं? नहीं तो फिर हम 'ट्रेसपासर' (किसी की संपत्ति में अनाधिकृत प्रवेश करनेवाला) कहलाएँगे!
__ यों घुड़दौड़ में से निकल सकते हैं
अब यह सब तो चलता ही रहेगा। उसमें खुद चलाता ही नहीं है। यह तो ज़रा गर्वरस चखने की आदत पड़ी हुई है न! इसलिए दूसरे की आठ सौ की तनख्वाह देखे न, तो मन में ऐसा होता है कि, 'हमें तो अठारह सौ मिलते हैं तो हमें कोई परेशानी नहीं है। इसे तो आठ सौ ही मिलते हैं !' यों शुरू हो जाता है ! जैसे अठारह सौ के ऊपर कोई ऊपरी ही नहीं होगा न, ऐसा! जहाँ ऊपरी होता है न, वहाँ स्पर्धा रहती ही है! वहाँ खड़े रहने का कारण ही क्या है हमारे पास? यह क्या 'रेस-कोर्स' में आए हैं?! हम क्या 'रेस-कोर्स' के घोड़े हैं ?! उसके बजाय तो वहाँ कह दे न, 'मैं बिल्कुल मूर्ख हूँ।' हम तो कह देते हैं न, कि 'भाई, हममें अक्ल नहीं है, हममें इस सारे व्यवहार की समझ नहीं है न!' और साफ-साफ ऐसी बात ही कर देते हैं न!
और ऐसा है, हमें तो दाढ़ी बनाना भी नहीं आता। तभी तो ब्लेड से छिल जाता है न! और हमने ऐसा इंसान देखा ही नहीं है जिसे दाढ़ी बनानी आती हो! ये तो मन में न जाने क्या 'इगोइज़म' लेकर घूमते रहते हैं! ऐसा तो मेरे जैसा ही कोई कहेगा न? बाकी, सामने तो सारी दुनिया है। थोड़े-बहुत लोग हों तो 'वोट' मिलेंगे, लेकिन यहाँ तो 'वोटिंग' में मैं अकेला ही हूँ इसलिए फिर मैं शोर नहीं मचाता। चुप रहता हूँ। क्योंकि 'वोटिंग' में सिर्फ मैं ही आता हूँ। बाकी, ऐसी चेतावनी कौन देगा? और मैं कहाँ चेतावनी देने बैलूं? यानी कि कैसी दुनिया में आ फँसे हैं।
ये बातें सुनना आपको अच्छा लगता है ? बोरियत नहीं होती? और इस बात को छानना मत। छानने मत बैठना। यों ही अंदर डाल देना। नहीं तो आपकी जोखिमदारी आएगी। यहाँ पर तो यह 'प्योर' वस्तु है। उसे बुद्धि से क्या छानना?