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आप्तवाणी-९
उसी प्रकार, ऐसा भी नहीं है कि हमें उन्हें भूखा मारना है। वे 'ज्ञानीपुरुष' के ताप से दूर चले जाते हैं, उसमें हम क्या करें? उसके बाद हमें जानबूझकर नहीं बुलाना है। आपके पास कभी खाने के लिए आते हैं?
प्रश्नकर्ता : आते हैं दादा।
दादाश्री : आज कच्चा खिलाओगे तो कल पक्का खाकर जाएँगे इसलिए उनके साथ खाने-खिलाने का व्यवहार ही नहीं रखना है। भोजन करवाने का व्यवहार ही नहीं। बाकी तो सभी लोग खिलाते हैं, क्रोध को भोजन करवाते हैं, मान को भोजन करवाते हैं।
प्रश्नकर्ता : ये सारी खुराक कषाय ही खा जाते हैं, तो क्या करना चाहिए?
दादाश्री : वे तो खा जाएँगे। फिर भी 'दादाजी' की छत्रछाया है, कृपा से सब साफ (क्लियर) हो जाएगा, ऐसा है। खुद ही अगर इस सत्संग में से इधर-उधर हो गए तो तुरंत ही चिपट जाएगा सब। आपको तो 'दादाजी' का आसरा नहीं छोड़ना है। चरण नहीं छोड़ने हैं!
ये क्रोध-मान-माया-लोभ वगैरह तो सब दबे हुए हैं। अभी अगर ज़रा दबाव आए न तो वे भभक उठेंगे। इसलिए अगर पूर्ण करना हो तो यह रास्ता है कि सभी क्षय हो जाने चाहिए। उपशम और क्षायक, इन दो शब्दों को समझ लेना।
ये सारी वंशावली कम हो जाएगी तब काम होगा। इस वंशावली को कम करना एक विकट काम है। अनंत जन्मों का माल है सारा! ये सभी गुण उपशम हो चुके हैं। अब इनमें से कुछ फूट निकलते हैं और कुछ अगले जन्म में फूटेंगे, उसमें हर्ज नहीं है। अगला जन्म तो समझो कि पद्धतिपूर्वक का जन्म है, लेकिन यहाँ फूट निकलेगा तो परेशानी हो जाएगी। यहाँ पर तो फिर, यहाँ से हिलने ही नहीं देंगे!
'क्षायक,' के बाद सेफसाइड पूर्णाहुति के बगैर यह बात हाथ में मत लेना क्योंकि अंदर सभी