Book Title: Aptvani 09
Author(s): Dada Bhagwan
Publisher: Dada Bhagwan Aradhana Trust

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Page 519
________________ ४६८ आप्तवाणी-९ प्रश्नकर्ता : यह समझ में नहीं आया। सभी शौक़ छूट जाएँगे तब या फिर पोतापणुं का शौक़ छूट जाएगा तब? दादाश्री : सिर्फ पोतापणुं का शौक़ छूट जाएगा, तब। बाकी के सभी शौक़ नहीं छूटेंगे तो हर्ज नहीं है। पोतापणुं का शौक़ बहुत भारी होता है। 'मेरा कहा हुआ ही करना पड़ेगा' कहेगा। अतः अगर बाकी सब शौक़ नहीं छूटेंगे तो कोई हर्ज नहीं है। प्रश्नकर्ता : पोतापणुं का शौक़ अर्थात् ऐसा है कि उसमें खुद का मनचाहा करवाना? दादाश्री : ऐसा नहीं है। यह ऐसा नहीं है कि धार्यु करवाने का शौक़ है। प्रश्नकर्ता : तो? दादाश्री : पोतापणुं! पूरे जगत् में सभी को है। वह पोतापणुं चला जाए तो भगवान हो गया, ऐसा कहा जाएगा। जिसमें पोतापणुं नहीं है, वह भगवान! आप सब को यह 'ज्ञान' दिया है, लेकिन आप सभी के पास पोतापणुं है ही। जब आपका पोतापणुं नहीं रहेगा, उस दिन आप भगवान ही बन जाओगे। अभी भी भगवान ही हो लेकिन बन नहीं गए हो क्योंकि आपमें पोतापणं है। लेकिन जब पोतापणं नहीं रहेगा तब आप भगवान बन चुके होंगे। 'भाव' से करना पुरुषार्थ 'ज्ञान' हो तो पोतापणुं जाता है, नहीं तो पोतापणुं नहीं जा सकता। प्रश्नकर्ता : लेकिन हम सभी ने ज्ञान प्राप्त किया तो फिर ज्ञान से वह आपो' (पोतापj) बढ़ता जाता है। क्योंकि फिर हमें भान आता कि यह आपोपुं तो घटने के वजाय बढ़ने लगा है। दादाश्री : वह आपोपुं नहीं है। आपोपुं तो, जब जानेवाला होता है न, तब वह आपोपुं माना जाता है। जब 'प्योर' हो जाता है तब आपोपुं माना जाता है, पोतापणुं माना जाता है।

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