Book Title: Aptvani 09
Author(s): Dada Bhagwan
Publisher: Dada Bhagwan Aradhana Trust

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Page 528
________________ [९] पोतापणुं : परमात्मा ४७७ लेकिन धीरे-धीरे जाएगा वह तो। जैसे-जैसे अनुभव की मार खाएँगे, जितना अनुभव बढ़ेगा उतना पोतापणुं टूटा। अहंकार जाने का मतलब तो यह कि पोतापणुं खत्म हो गया न! अभी तक तो कितने सारे अनुभव होंगे तब पोतापणुं छूटने का अंश आएगा। मूल अहंकार चला गया, 'चार्ज' अहंकार चला गया। उसी को अहंकार कहा जाता है लेकिन उस 'डिस्चार्ज' अहंकार का जाना कोई लड्डू खाने का खेल नहीं है। अहंकार चला गया तो, उसे क्या कहते हैं ? गर्व नहीं, गारवता नहीं, पोतापणुं नहीं। क्या वह सब नहीं जाना चाहिए? इस 'ज्ञान' के बाद अहंकार तो चला ही गया है, वह 'चार्ज' अहंकार तो चला गया है। फिर बचा कौन सा अहंकार? 'डिस्चार्ज।' जितना अनुभव होता जाएगा, उतना 'डिस्चार्ज' अहंकार कम होता जाएगा और उसके बाद पोतापणुं धीरे-धीरे घटेगा। ऐसे ही नहीं घट जाता। यह लड्डू खाने के खेल नहीं हैं। तभी वह कहता है, 'पूरी जिंदगी में ऐसा नहीं हो सकता?' मैंने कहा, 'एक-दो जन्मों में मोक्ष में जा सकेंगे' दूसरी गलत आशाएँ रखने का क्या मतलब है ? गलत आशाएँ रखने से फायदा होता है क्या? यह सारा ही पोतापj पोतापणुं खत्म होने के बाद गारवता-गर्व कुछ भी रहता नहीं है न! यह तो, गर्व-गारवता सभी कुछ रहता है। पोतापणुं रहित के लक्षण क्या होते हैं? कोई गालियाँ दे तो भी स्वीकार कर ले, कोई मारे तो भी स्वीकार कर ले। अहंकार के पक्ष में बैठना, उसे पोतापणुं कहते हैं। अज्ञानता के पक्ष में बैठना, वह पोतापणुं कहलाता है। उपयोग चूके, वह पोतापणुं कहलाता है। आप भी थोड़ी देर के लिए उपयोग चूक जाते हो, वह पोतापणुं कहलाता है। आप कहते हो कि 'अंदर जो कुछ आता है उसमें एकाकार हो जाते हैं, तन्मयाकार हो जाते हैं, और बाद में पता चलता है, वह पोतापणुं के कारण एकाकार हो जाते हैं।

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