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आप्तवाणी - ९
जबकि दूसरे सब तो अलग लेकर बैठ जाएँगे। यह रखो आपका ज्ञान और यह हमारा अलग अलग गच्छ लेकर बैठ जाता है । तीन लोग इकट्ठे होते हैं, उसे गच्छ कहते हैं। तीन साधु या तीन लोग इकट्ठे होकर आराधना करने बैठे, उसे गच्छ कहते हैं । भगवान ने उसे गच्छ नाम दिया। गच्छ बनाए तो क्या बुरा है ? तीन लोग तो मिल जाएँगे !
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प्रश्नकर्ता : लेकिन गच्छ हो वहाँ पर मोक्षमार्ग नहीं रहा न, फिर ? दादाश्री : हाँ, और गच्छ है तो सब खत्म लेकिन ऐसा गच्छ बनाते हैं न ! यह मेरा अलग और यह इनका अलग ।
प्रश्नकर्ता : उसमें तो फिर गिर पड़ते हैं।
दादाश्री : गिरे हुए ही है न! अलग हो जाए तभी से गिर जाता
है।
ज्ञानी दशा का प्रमाण
ऐसा है, यह 'ज्ञान' लिया इसलिए पूरा ही जो पोतापणुं था, वह धीरे-धीरे कम होते-होते फिर धीरे-धीरे ज़ीरो हो जाता है । 'जीरो' हो जाए तो फिर वह ‘ज्ञानी' कहलाता है । फिर उसकी वाणी में बिल्कुल परिवर्तन आ जाता है। पोतापणुं जाने के बाद वाणी निकलती है । जितना पोतापणुं कम हो, उतनी वाणी उत्पन्न होती है और वह वाणी सच्ची होती है! बाकी, तब तक सारी ही वाणी गलत । बाहर तो, अपने 'ज्ञान' लिए हुए ‘महात्माओं' के अलावा दूसरी सभी जगह पर पोतापणुं है, और वाणी बोलते हैं लेकिन वह वाणी तो हवा - पानी जैसी है, वाणी है ही नहीं । वह सब लौकिक कहलाता है और अपने 'ज्ञान' लिए हुए महात्मा हों तो उनका पोतापणुं निकल जाए, उसके बाद ही बोलना चाहिए, वर्ना नहीं बोलना चाहिए।
अपने 'ज्ञान' लिए हुए महात्मओं में से कोई एक भी व्यक्ति खुद का एक भी स्वतंत्र वाक्य बोल सकता है ? नहीं। जब तक किसी ने 'मूल वस्तु' को प्राप्त नहीं किया है तब तक एक वाक्य भी नहीं बोल सकते