________________
४८०
आप्तवाणी-९
दादाश्री : पोतापणुं खत्म होने के बाद भी उदय तो आता ही है न! लेकिन उस उदय में पोतापणुं नहीं होता।
प्रश्नकर्ता : हाँ, लेकिन यह तो पोतापणुं खत्म हो तब न?
दादाश्री : उसके बाद भी उदय तो आता ही रहेगा न! लेकिन इसमें पोतापणुं नहीं होगा। उदय तो मेरे भी हैं न! लेकिन उदय में हमारा पोतापणुं नहीं होता। उदय में पोतापणुं सभी को बरतता ही है लेकिन 'ज्ञान' के बाद वह पोतापणुं कम होता जाता है, बढ़ता नहीं। कम होतेहोते खत्म हो जाता है।
प्रश्नकर्ता : और वह पोतापणुं तो जब उदय आएगा तब दिखाई देगा?
दादाश्री : हाँ। इसलिए कहा है न, जैसे-जैसे उदय आते जाएँगे, वैसे-वैसे आत्मा का अनुभव आता जाएगा, वैसे-वैसे अहंकार कम होता जाएगा। इस तरह यह सब 'रेग्युलर' होता जाएगा। फिर उसे अनुभव बढ़ता जाएगा।
समझना ज्ञान भाषा की गहन बातें प्रश्नकर्ता : तो फिर अहंकार खत्म करने की माथापच्ची करने की ज़रूरत नहीं है। अपने आप ही क्रम से उदय में आएगा और उसे हमें देखते रहना है।
दादाश्री : नहीं। आपको पुरुषार्थ करना बाकी रहा। 'कुछ करने जैसा नहीं है' ऐसा नहीं है। वास्तविक पुरुषार्थ ही अब करना है।
प्रश्नकर्ता : लेकिन इसे देखते' रहने के अलावा दूसरा क्या पुरुषार्थ है?
दादाश्री : उसे देखते रहना है, लेकिन उसे उस तरह से देख नहीं पाते हैं। देखना भी इतना आसान नहीं है। पुरुषार्थ करना पड़ेगा आपको। पुरुषार्थ करोगे तो देख पाओगे।