Book Title: Aptvani 09
Author(s): Dada Bhagwan
Publisher: Dada Bhagwan Aradhana Trust

View full book text
Previous | Next

Page 524
________________ [९] पोतापणुं : परमात्मा ४७३ प्रश्नकर्ता : फिर बाकी के नब्बे प्रतिशत पोतापणुं तो रहेगा ही न? दादाश्री : हाँ। अधिक जागृति वाले का नब्बे प्रतिशत रहता है और कम जागृति वाले का अट्ठानवे प्रतिशत रहता है। प्रश्नकर्ता : अब जो बाकी बचा है, वह कैसे खाली होगा? दादाश्री : बाद में, अगली बार निकलेगा वह तो। प्रश्नकर्ता : यानी जैसे-जैसे उदय आता है वैसे-वैसे पोतापणुं निकल जाता है? दादाश्री : हाँ, लेकिन उसमें जितनी अधिक जागृति रहती है, पोतापणुं उतना ही 'स्पीडी' निकल जाता है और जितने प्रतिशत पोतापणुं खत्म होता है, उसी अनुपात में जागृति बढ़ती जाती है। यथार्थ जागृति, जुदापन की प्रश्नकर्ता : उदय आने पर, उसमें जो जागृति बरतती है और दस प्रतिशत या फिर दो प्रतिशत पोतापणुं खत्म होता है तो वह जागृति कैसी होती है? वह जागृति किस तरह बरतती है कि पोतापणुं खत्म हो जाता है? दादाश्री : 'मैं शुद्धात्मा हूँ' वह और फिर इन आज्ञाओं की वह सारी जागृति रहती है। यह कौन, मैं कौन' ऐसी सारी जागृति रहती है। मारनेवाला, वह मारनेवाला नहीं है, वह शुद्धात्मा है ऐसी सारी जागृति रहती है। जो यह जानता है कि 'यह मैं नहीं, यह मैं हूँ,' वह आत्मा है ! 'यह मैं और यह नहीं हूँ' ऐसी सारी जागृति रहनी चाहिए। प्रश्नकर्ता : वह खुद क्या नहीं है और खुद क्या है ? उसमें क्याक्या देखता है?

Loading...

Page Navigation
1 ... 522 523 524 525 526 527 528 529 530 531 532 533 534 535 536 537 538 539 540 541 542