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आप्तवाणी-९
यहाँ अब भरता नहीं हैं। अर्थात् 'चार्ज' अहंकार तो जा चुका है लेकिन जो 'डिस्चार्ज' अहंकार है, वह पोतापणुं कहलाता है।
'डिस्चार्ज' पोतापणुं है प्रमाण 'जागृति' का
प्रश्नकर्ता : यानी इस 'ज्ञान' के बाद पोतापणुं 'डिस्चार्ज' भाव कहलाता है!
दादाश्री : वह 'डिस्चार्ज' भाव है, भरा हुआ माल है। जैसे-जैसे वह माल निकलता जाएगा, वैसे-वैसे पोतापणुं खत्म होता जाएगा, पोतापणुं निकल जाएगा।
प्रश्नकर्ता : अर्थात् पोतापणुं इस माल के आधार पर टिका हुआ है? दादाश्री : हाँ।
प्रश्नकर्ता : और जैसे-जैसे माल खाली होगा, वैसे-वैसे पोतापणुं खत्म होता जाएगा?
दादाश्री : हाँ, जैसे-जैसे माल खाली होगा वैसे-वैसे पोतापणुं कम होता जाएगा। पोतापणुं यों ऐसे ही कम नहीं होगा। टंकी में से माल खाली हो गया तो पोतापणुं खत्म हो जाएगा।
जितना पोतापणं निकल जाए उतना चला ही जाता है लेकिन अगर कम निकला हो तो उतना अधिक बचेगा और अधिक निकल जाए तो उतना कम हो जाएगा। वहाँ पर जितनी जागृति हो उस अनुसार पोतापणुं निकल जाता है। जितनी जागृति की मात्रा होती है, उस अनुपात में पोतापणुं निकल जाता है। जागृति अधिक हो तो अधिक पोतापणुं निकल जाता है और जल्दी निकल जाता है। जागृति कम हो तो पोतापणुं धीरेधीरे निकलता है।
लेकिन अभी इस 'ज्ञान' के बाद आपमें पूरा सौ प्रतिशत पोतापणुं है। अगर जागृति अधिक हो तो तुरंत दस प्रतिशत पोतापणुं निकल जाता है, और जागृति कम हो तो दो प्रतिशत ही निकलता है।