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[८] जागृति : पूजे जाने की कामना
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करेगा फिर। सुबह से शाम तक क्या कम काम है? कितनी ‘फाइलें' आती होंगी? कुछ लोग कहते हैं, 'मेरे पति ने मुझे ऐसा किया!' अब यह पाठ भी हमें सिखाना है?
प्रश्नकर्ता : इस दुनिया में कोई ऐसा केस नहीं होगा कि जो आपके पास नहीं आया हो, सभी प्रकार के केस आए हैं।
दादाश्री : क्या करें फिर? एक-दो लोगों को 'मैंने' मना किया तब ‘अंदर' से बोले, 'फिर कौन से अस्पताल में जाएगा यह बेचारा? यहीं से आप निकाल दोगे तो वह कौन से अस्पताल में दाखिल होगा। बाहर किसी अस्पताल में फिट है ही नहीं।' इसलिए फिर मैंने शुरू किया वापस! लेकिन मन में तो ऐसा होता है कि यह क्या झंझट? इसलिए इन्हें धकेल देने का मन होता है लेकिन वापस अंदर से आता है कि 'लेकिन वह जाएगा कहाँ बेचारा? और कौन से अस्पताल में जाएगा? भले ही पागल जैसा है, बोलना भी नहीं आता, विवेक भी नहीं है, कुछ भी नहीं है, भले ही ऐसा है फिर भी चलने दो!'
प्रश्नकर्ता : यह जो कहते हैं न कि 'चले जाएँ तो अच्छा है' वह कौन सा भाग बोलता है ? और वह कहते हैं कि 'यह बेचारा कहाँ जाएगा?' वह कौन सा भाग बोलता है?
दादाश्री : वह भाग परमात्म भाग है! कहाँ जाएगा वह ?' परमात्म भाग बोलता है ! 'भले ही पागल जैसा है, अपने साथ अविनय से बोल रहा है, लेकिन वह अब कहाँ जाएगा?!' परमात्म भाग ऐसा बोलता है!
और कोई अस्पताल नहीं है कि ऐसे माल को रखेगा। अच्छे को भी नहीं रखते हैं, तो फिर! और रखकर भी उनके पास दवाइयाँ नहीं हैं। उनके पास कूटे हुए चूर्ण हैं और यहाँ पर कूटे हुए चूर्ण नहीं चलते। यहाँ तो लेई चाहिए, जो चुपड़ते ही ऐसे चिपक जाए!
बाकी इस कीचड़ में, और फिर बदबूदार कीचड़ में कौन हाथ डाले? लेकिन वह एक जीव तर जाए न, तो और कितने ही जीवों का जीवन रास्ते पर आ जाएगा, बेचारे! और उसका कल्याण हो ऐसा भाव