Book Title: Aptvani 09
Author(s): Dada Bhagwan
Publisher: Dada Bhagwan Aradhana Trust

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Page 510
________________ [९] पोतापणुं : परमात्मा ४५९ से 'आत्मा' जुदा ही है। इस 'अंत:करण' में जो, 'खुद' है, वह 'खुद' खिसक जाता है। प्रश्नकर्ता : 'खुद' कौन है ? उस 'खुद' की 'डेफिनेशन' दीजिए न! दादाश्री : वही पोतापणुं है। हम कहें 'चलो बगीचे में।' तो आप मना कर देते हो कि 'नहीं। मुझे अच्छा नहीं लगेगा वहाँ पर, मैं नहीं आऊँगा।' वही पोतापणुं है जबकि 'ज्ञानीपुरुष' में पोतापणुं नहीं होता। जैसे ही आप कहो, वैसे ही वे वहाँ पर आ जाते हैं। प्रश्नकर्ता : यह पोतापणुं कौन करता है? दादाश्री : वही। वही, मूल था वही का वही। अभी तक भी उस 'सीट' को नहीं छोड़ता है। सत्ता खत्म हो गई, लेकिन 'वह' 'सीट' नहीं छोड़ता। तो धीरे-धीरे 'हमें' वह छुड़वा देनी है। 'उसकी' सत्ता खत्म हो गई है, इसलिए परेशानी नहीं है लेकिन इस 'सीट' को छोड़ना आसान नहीं है। पोतापणुं छूटना आसान नहीं है। पोतापणुं आपकी समझ में आया या नहीं आया? जो 'डिस्चार्ज' हो चुका है लेकिन भीतर वहाँ पोतापणुं के भाव बरतते रहते हैं। निरा 'इफेक्ट' ही है। सत्ता खत्म हो गई है, सत्ता तो पूरी खत्म हो चुकी है लेकिन उसका मूल स्वरूप जाता नहीं है। धीरे-धीरे वह जड़ से निकल जाएगा, एकदम से नहीं चला जाएगा न! हममें पोतापणं नहीं है। अतः वैसा ही बन जाना है। आपमें भी, इस 'ज्ञान' के बाद में 'उसकी' सत्ता चली गई है, अतः कभी न कभी ऐसा हो ही जाएगा लेकिन ये क्या बने हैं, वह जानना चाहिए। 'मैं 'पन चला गया है, सत्ता चली गई है। सत्ता गई तो समझो खत्म हो गया लेकिन वह 'खुद' बचा है। ___ मैं, वकील, मंगलदास 'खुद' का मतलब आपको समझाता हूँ। एक वकील आए थे। मैंने कहा, 'क्या नाम है ?' तब उन्होंने कहा, 'मंगलदास।' 'क्या काम करते

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