Book Title: Aptvani 09
Author(s): Dada Bhagwan
Publisher: Dada Bhagwan Aradhana Trust

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Page 516
________________ [९] पोतापणुं : परमात्मा ४६५ 'दादा' बन गया है, जा! ऐसा नौ बार करे और नौ बार उतर जाए और नौ बार में से उतारनेवाले को तू कर्ता नहीं माने, बुलाने वाले को भी कर्ता नहीं माने, 'व्यवस्थित' को ही कर्ता माने और वापस बुलाए तब भी मन में कुछ भी नहीं हो और हँसते-हँसते वापस आ जाए और हँसते-हँसते उतर जाए, तो इतना मज़ा आएगा, इतना मज़ा आएगा! तब वह क्या कहलाएगा? कि यह भाई प्रकृति का रक्षण नहीं कर रहा है और इसलिए उसका पोतापणुं चला गया। खुद प्रकृति का रक्षण करना, वही पोतापणुं है। यह तो, जिस प्रकृति से छूटना है उसी का रक्षण करता है। तब जाएगा पोतापणुं अब मैं ऐसा नहीं कह रहा हूँ कि आपको अपनी प्रकृति का रक्षण नहीं करना चाहिए लेकिन आपके मन में यों ऐसा होना चाहिए कि आपमें यह ज्ञान इस तरह से रहना चाहिए। मैं वर्तन नहीं चाहता। वर्तन में तो कब आएगा? ऐसी श्रद्धा, प्रतीति फिट हो जाएगी, उसके बाद यह ज्ञान परिणामित होगा। दिनोंदिन जब ज्ञान उसे अनुभव में आता जाएगा, तब वर्तन में आएगा। __एक बार उतार दिया जाए तो असर हो जाता है, और बाद में वापस जब अंदर ज़रा ठंडा पड़ता है, तब ज्ञान याद आता है। ऐसे करतेकरते फिट हो जाता है। पहले प्रतीति में आता है, फिर अनुभव होते-होते पहले कुछ समय तक ज्ञान में रहने के मिथ्या प्रयत्न करता है और फिर वर्तन में आता है लेकिन थोड़ा बहुत अनुभव में आ जाए, तब भी बहुत हो गया न?! एकाध-दो बार भी यदि गाड़ी से उतरकर मुँह बिगाड़े बिना वापस बैठने आए, तब भी बहुत अच्छा कहा जाएगा। हाँ, वर्ना तो चेहरा बिगड़ी हुई कढ़ी जैसा हो जाता है न?! मुझे ऐसा लगता है आपको ऐसा नहीं होता होगा। नहीं? एक बार उतरकर देखना। ऐसा समय आए तो उतरकर देखना और फिर मुँह बिगाड़े बगैर बैठ जाना।

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