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आप्तवाणी-९
प्रश्नकर्ता : हम तो देखने वाले हैं। करना क्या और नहीं करना क्या?
दादाश्री : हाँ, 'देखने वाले' में तो पोतापणुं होता ही नहीं है न ! 'देखने वाले' में पोतापणुं होता ही नहीं है न! लेकिन यह बात तो उसके लिए है जहाँ अभी तक भी वह प्रकृति का रक्षण करता है।
आप यहाँ से जा रहे हो और वहाँ तक जाने के बाद कोई कहे, 'नहीं, उस तरफ से होकर जाना है।' तो उस घड़ी अंदर ज़रा झटका लगता है न?
प्रश्नकर्ता : हाँ।
दादाश्री : वही है प्रकृति का रक्षण! वर्ना तो उतनी ही 'स्पीड' से वापस इस तरफ मुड़ जाए। उतनी 'स्पीड' से, उसी 'टोन' से, और उसी 'मूड' से। जिस 'मूड' में था न, वही का वही 'मूड।' यह तो अंतिम दशा की बात की है!
'टेस्ट,' पोतापणुं का मान लो अभी कहीं गाड़ी में जाना हो और आपसे कहा 'आ जाओ।' और बिठाने के बाद और किसी ने कहा कि, 'उतर जाओ यहाँ से। अभी एक व्यक्ति और आने वाले हैं।' उस समय क्या करते हो? बैठे रहते हो न? 'नहीं उतरूँगा' ऐसा कहते हो न?
प्रश्नकर्ता : खुद उतर जाएगा। दादाश्री : तुरंत? प्रश्नकर्ता : तुरंत ही। उतर ही जाएगा न !
दादाश्री : 'नहीं उतरूँगा' ऐसा नहीं कहोगे? लेकिन फिर आगे थोड़ी दूर जाए और वापस बुलाए 'आ जाओ।' तो आ जाते हो न? चेहरे पर कोई बदलाव तो नहीं हो जाता न?
मैं क्या कह रहा हूँ ? ऐसा नौ बार रह पाए तो मैं कहूँगा कि तू