Book Title: Aptvani 09
Author(s): Dada Bhagwan
Publisher: Dada Bhagwan Aradhana Trust

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Page 512
________________ [९] पोतापणुं : परमात्मा ४६१ नहीं है, उतना सारा पोतापणुं ही है। कोई आपसे कहे कि 'आप खराब हो।' तो तुरंत पोतापणुं हो जाता है न? प्रश्नकर्ता : कभी-कभी हो जाता है। दादाश्री : कभी-कभी हो जाता है या हर रोज़ होता है? कब नहीं हुआ, वह बताओ न! यह तो सारा पोतापणुं ही है न! खुद जो रक्षण करता है, तभी से पोतापणुं है। खुद का रक्षण करे तभी से पोतापणुं। इस प्रकृति का जो रक्षण करता है, वह सारा पोतापणुं है। प्रकृति का मालिकीपन ऐसे श्रद्धा से टूटा है, लेकिन अभी तक वह पोतापणुं जाता नहीं है न! प्रश्नकर्ता : 'मेरा सही है' जब तक ऐसा है, तब तक पोतापणुं ही रहेगा न? दादाश्री : सही-गलत होता ही नहीं। पोतापणुं में हर्ज नहीं है। दूसरे बहुत सारे पोतापणुं होते हैं न! कुछ कहने से पहले तो फट जाता है। प्रकृति का रक्षण करता है, रक्षण तो करता है लेकिन कपट करके उसे उलट भी देता है। वहाँ पर पोतापणुंडबल हो गया। पूरा जोर लगाकर खुद की रक्षा करना, वह कहलाता है पोतापणुं। अभी तो पोतापणुं को संभालता है, लेकिन वापस कला करके खिसक भी जाना चाहता है, ऐसा भी करता है। यानी ऊपर से कला भी करता है। कला मतलब कपट। पोतापणुं का अर्थ समझ गए न? अभी भी खुद की रक्षा करता है और वह भी कपट करके, कला करके रक्षा करता है। प्रश्नकर्ता : खुद की प्रकृति का रक्षण करना, उसे पोतापणुं कहा है, तो फिर वह भाग कपट में कब जाता है ? दादाश्री : पूरा पोतापणुं प्रकृति के रक्षण में ही जाता है लेकिन कुछ जो कपटवाला नहीं हो, वह पोतापणुं अच्छा कहलाता है, नरम कहलाता है जबकि वह कपटवाला खराब कहलाता है। प्रश्नकर्ता : आपने कहा कि प्रकृति का रक्षण करना, वह पोतापj

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