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आप्तवाणी - ९
हो?' तब उन्होंने कहा, 'वकील का ।' 'तो मैं वकील हूँ ऐसा कहते हो न!' तब उन्होंने कहा कि, 'वह तो, मैं ही वकील हूँ न ।'' और मंगलदास कौन है ?' तब उन्होंने कहा, 'मैं ।' 'और वकील कौन?' तब उन्होंने कहा, 'मैं।' तब मैंने कहा, 'मैं वकील मंगलदास, ऐसा कहना चाहिए न, आपको ?'
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एक व्यक्ति ऐसा कह रहा था। रात को घर के सभी लोग सो गए थे न, तो बाहर किसी ने कुंडी खटखटाई । 'अरे, अभी रात को दो बजे कौन खटखटा रहा है ?' तब वह कहने लगा कि, 'मैं ।' 'अरे, लेकिन मैं कौन? परिचय दो, तभी दरवाज़ा खोलूँगा, नहीं तो दरवाज़ा नहीं खोलूँगा।' तब उसने कहा, ‘मैं बावा ।' 'अरे, लेकिन कौन सा बावा ? बता न ।' तब उसने कहा 'मैं बावा मंगलदास ।' तब उसने दरवाज़ा खोला ।
उसी तरह 'मैं वकील मंगलदास ' है । आपने यह 'ज्ञान' लिया तो वे 'वकील' और 'मंगलदास' चले गए, लेकिन 'खुद' रहा है । तो अभी तक आपमें पोतापणुं है। कोर्ट में कोई वकील उल्टा बोले न, उस घड़ी पोतापणुं आ जाता है।
अभी मेरे साथ अपने सत्संग से संबंधित या अन्य किसी चीज़ से संबंधित अंदर बड़ी, लंबी बात लेकर आए तो भले ही डेढ़ घंटे तक चले लेकिन हमें उसमें कोई दखलंदाजी नहीं रहती न ! जबकि दूसरी जगहों पर ऐसा हो जाता है तब मतभेद भी हो जाते हैं । हमारी दखलंदाजी नहीं होती। सौ घंटों का काम एक घंटे में कर देते हैं, हंड्रेड अवर्स का काम । लेकिन दखलंदाज़ी नहीं होती न ! क्योंकि हममें पोतापणुं है ही नहीं न !
रक्षण, वह है लक्षण पोतापणुं का
पोतापणुं है या नहीं?
प्रश्नकर्ता : कभी-कभी हो जाता है ।
दादाश्री : नहीं तो क्या रहता है ? आत्मा की तरह रहता है ?! जिसमें पोतापणुं नहीं रहता वह निरंतर जागृत रहता है । जितनी जागृति