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[८] जागृति : पूजे जाने की कामना
बोलना और बोलना हो तब भी मुझे बताना, मैं कहूँगा कि 'बोलो अब आप।' बाकी बहुत जोखिम है, एक अक्षर भी बोलना हो तो भी बहुत जोखिम है।
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जगत् का कल्याण होना होगा तब होगा, आपको अपने आप ही जब कुदरत निमित्त बनाए, उसके बाद करना न! आप तैयार होने मत जाना। तैयार होने जैसी चीज़ नहीं है यह! आपकी सिद्धियाँ बेचने जाओगे, तो जगत् क्या नहीं देगा ? लेकिन आपकी मनुष्यरूपी पूँजी खत्म! अरे, खत्म ही नहीं, बल्कि मनुष्यरूपी पूँजी चली जाएगी और नर्क के अधिकारी बन जाओगे।
अपना तो मोक्षमार्ग है, इसमें तो गुप्त वेश में निकल जाना है
'ज्ञानी' के साथ सीधी तरह से चलेंगे
अपना यह सत्संग मत छोड़ना । लोग ऐसा सिखाएँ, वैसा सिखाएँ, तब भी यह सत्संग मत छोड़ना । यहाँ आए यानी भगवान की कृपा उतर गई फिर सबकुछ ठीक हो जाएगा । उसमें कोई देर नहीं लगेगी । अतः ऐसी सब मुश्किलें तो आएँगी । इसीलिए तो हम कहते हैं न, 'मोक्ष में जाते हुए विघ्न अनेक प्रकार के होने से उनके सामने मैं अनंत शक्तिवाला हूँ ।' लेकिन सामनेवाला भी ( चंदूभाई ) अनंत शक्तिवाला है न कि मोक्ष में जाने ही नहीं देगा !
इसलिए भगवान ने कहा है, कि "ज्ञानीपुरुष' के अधीन रहकर चलना, उनके कहे अनुसार चलना । वे कुछ भी कहें, फिर भी चलते जाना क्योंकि वीतरागता है। खुद की बुद्धि से समझ में नहीं आए तो तय करना कि उनके नौ ‘इक्वेशन' ( समीकरण) समझ में आए हैं और एक समझ में नहीं आया तो उनकी भूल मत निकालना और 'मेरी भूल की वजह से समझ में नहीं आया' ऐसा समझना । क्योंकि अगर नौ समझ में आ गए, तो दसवाँ समझ में क्यों नहीं आ रहा ? इसलिए उनकी भूल मत निकालना। वे भूल को खत्म करके बैठे हैं।' बुद्धि तो भूल दिखलाएगी, 'ज्ञानीपुरुष' की भी भूल ढूँढ निकालेगी ।