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[८] जागृति : पूजे जाने की कामना
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यह व्यवहार तो दूसरी ओर ही ले जाता है न! अनादि से जिसकी आराधना की है, वह यही एक मार्ग है न! व्यवहार तो हमेशा ही उस तरफ की आदतवाला होता है न! अतः अगर उस तरफ जाए तो भी हमें अपने ध्येय के अनुसार चलाना है। अगर पुराना रास्ता देखे तब बैल तो उसी रास्ते पर चलता जाता है। हमें अब अपने रास्ते पर ध्येय के अनुसार चलना है। इस रास्ते से नहीं, दूसरे रास्ते से जाना है। ऐसे चल' कहना।
अतः अगर खुद रिश्वत नहीं लेता है तो अंदर वाले तुरंत ही कहे अनुसार मुड़ जाते हैं लेकिन अगर रिश्वत लेता है तो फिर मार खिलाते हैं, हर बात में मार खिलाते हैं। इसलिए ध्येय से पीछे नहीं हटना चाहिए।
प्रश्नकर्ता : यह रिश्वत कैसी होती है?
दादाश्री : चख आता है और चखते समय फिर जब मीठा लगता है न, तो फिर वहाँ पर बैठ जाता है। 'टेस्ट' कर आया इसलिए वापस फिर थोड़ा एकाध-दो बोतल पी आता है।
यह सब चोर दानत कहलाती है। ध्येय पर जाना है, वह और चोर दानत, ये दोनों साथ में कैसे रह सकते हैं ? दानत पक्की रखनी चाहिए, कोई भी रिश्वत लिए बगैर। यह तो वह मस्ती चखने की आदत होती है, इसलिए ऐसे वहाँ बैठकर ज़रा वह मस्ती के आनंद में रहता है।
प्रश्नकर्ता : यानी प्रकृति की मस्ती?
दादाश्री : तो फिर और क्या? उसे उसी की आदत पड़ गई है न! इसलिए अगर 'आप' कहो कि, 'नहीं, हमें तो अब ऐसे जाना है। मुझे मस्ती नहीं चाहिए। हमारे ध्येय के अनुसार चलना है।' ये प्रकृति की मस्तियाँ तो भूल-भूलैया में ले जाती हैं। ___ जो ध्येय तुड़वा दें, वे अपने दुश्मन हैं। अपने ध्येय का नुकसान करवाए तो वह कैसे पुसाएगा?! वर्ना यह तो उसके जैसा है कि ब्रह्मचर्य पालन करना है और अब्रह्मचर्य के विचार करने हैं। विचार में मिठास तो आती है, लेकिन क्या हो सकता है? यह भयंकर गुनाह है न! फिर