Book Title: Aptvani 09
Author(s): Dada Bhagwan
Publisher: Dada Bhagwan Aradhana Trust

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Page 499
________________ ४४८ आप्तवाणी-९ एक जन्म का मरण हो तो चला सकते हैं, लेकिन 'ज्ञानीपुरुष' की विराधना करने से तो लाखों जन्मों का मरण होता है। किसकी विराधना की, वीतराग की? ये 'अंबालाल मूलजी भाई' को गालियाँ देनी हो तो, सौ गालियाँ देना। आपको ठीक नहीं लगता है तो गाली दो न! लेकिन, समझे बगैर ही लोग गुनाह कर बैठते हैं इसीलिए तो हमें गुप्त रखना पड़ा। गुप्त ही रखा है! मैंने कहा है कि यह बहुत ऊँची जगह पर आपको ले जा रहा हूँ। वहाँ से गिरे तो हड्डी का टुकड़ा भी नहीं मिलेगा, इसलिए या तो मेरे साथ ऊपर आना ही मत और आना हो तो सावधानी से चलना। मोक्ष सरल है, एक ही अवतारी विज्ञान है यह। लेकिन यदि उल्टा-सीधा करना हो तो ऊपर चढ़ना ही मत, हमारे साथ आना ही मत। ऐसा सभी से कहा हुआ ही है। बहुत ऊँचा रास्ता है ऊपर से गिरने पर फिर हड्डी भी नहीं मिलेगी। फिर भी ऊपर आए हुए लोग वापस मुझसे कहते हैं कि 'यह अभी परेशान करेगा, ऐसा करेगा।' लेकिन हमने उसे इस प्रकार से बंधन में रखा है ताकि वह गिरे नहीं। जैसे सरकार रेलिंग बनाती है न, उसी तरह हम भी साधन रखते हैं। अभी तक किसी को गिरने नहीं दिया है। अहो! कारुण्यता ‘ज्ञानी' की जो रोग होता है, वह 'ज्ञानीपुरुष' बताते हैं क्योंकि उन्हें सामने वाले का रोग मिटाना है, अन्य कोई भी दोष नहीं बताता। डॉक्टर मरीज़ का रोग बढ़ाता है या मिटाता है? और हम कहाँ यह हमारे लिए कह रहे हैं? यह तो आपके लिए 'स्पेशली' और वह भी वीतरागता से कह रहे हैं। शब्द कठोर नहीं होंगे तो रोग नहीं निकलेगा। कठोर शब्द के बिना रोग नहीं निकलता। रोग किससे निकलता है ? कठोर शब्द और वीतरागता! कैसे शब्द कठोर, जोड़ों को तोड़ दें ऐसे कठिन और इसके बावजूद भी संपूर्ण वीतरागता! ये 'दादा' बैठे-बैठे आराम से लोगों को सीधा करते हैं, धोते रहते हैं लेकिन फिर भी सभी को कहाँ धोने जाऊँ? मेरा दिमाग़ ही काम नहीं

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