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[८] जागृति : पूजे जाने की कामना
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___ प्रश्नकर्ता : खुद को पूजे जाने की कामना है या नहीं उसका उसे खुद को कैसे पता चलता है?
दादाश्री : सबकुछ पता चलता है खुद को। उसे क्या अच्छा लगता है वह पता चलता है। क्या यह पता नहीं चलता कि आइस्क्रीम भाती है? अंदर थर्मामीटर है आत्मा ! सब पता चलता है।
आज के जीव लालची बहुत हैं। वह खुद का ही शुरू करते हैं जगह-जगह पर, पूजे जाने के लिए सबकुछ करते हैं। और पूजे जाने की कामना रखनेवाले फिर कभी नया धारण नहीं कर सकते, सच्ची बात। हर कहीं पर लोग दुकान लगाकर बैठ गए हैं और पूजे जाने की कामना अंदर भरी रहती है कि "किस तरह मुझे 'जय-जय' करे।" तो उसे अंदर मन में मीठा लगता है। कोई 'जय-जय' करे तो मीठा लगता है। इतना मज़ा आता है वास्तव में!
उल्टा रास्ता है यह सारा! पूजे जाने की कामना जैसा भयंकर कोई रोग नहीं है। सब से बड़ा रोग हो तो पूजे जाने की कामना! किसे पूजना है? आत्मा तो पूज्य ही है। देह को पूजना रहा ही कहाँ फिर?! लेकिन पूजे जाने की इच्छाएँ-लालच है सारा। देह को पुजवाकर क्या हासिल करना है? जिस देह को जला देना है, उसे पुजवाकर क्या हासिल करना है? लेकिन यह लालच ऐसा है कि 'मेरी पूजा करे' इसलिए ये पूजे जाने की लालसाएँ हैं। नहीं तो मोक्ष कोई मुश्किल नहीं है। ऐसी जो नीयत होती है न, उससे मुश्किल है।
ऐसी इच्छा होना भी भयंकर गुनाह है। ऐसी इच्छा कभी हुई थी? अंदर थोड़ी कुलबुलाहट होती है? यह तो हम सावधान कर रहे हैं। सावधान नहीं करेंगे तो फिर गिर जाएगा न! अच्छी जगह पर आने के बाद गिर जाए तो फिर बेकार हो जाएगा, 'यूज़लेस' हो जाएगा और चोट भी बहुत लगेगी। नीचे हो और गिर जाए तो बहुत चोट नहीं लगती। बहुत ऊपर तक दौड़कर गिर जाए तो बहुत चोट लगती है। इसलिए जहाँ हो वहीं पर रहना, नीचे मत उतर जाना वापस।