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आप्तवाणी-९
कहाँ दौड़ें? फिर भी हम एक बार नाल लगाने गए थे (एक बार हमारे (दादा के) बूट की कील बाहर निकल आई तो तपस्वी की तरह तप करने गए), तो पैर में अभी तक घट्टे पड़े हुए हैं!
तो 'पर्सनालिटी' पड़ेगी जहाँ देखो वहाँ रेस-कोर्स क्योंकि सभी लोग रेस-कोर्स में उतरे हुए हैं। घर में वाइफ के साथ भी रेस-कोर्स खड़ा हो जाता है। दो बैल साथ में चल रहे हों और एक ज़रा आगे बढ़ने लगे न, तो दूसरा साथवाला भी ज़ोर लगाता है फिर।
प्रश्नकर्ता : ऐसा किसलिए?
दादाश्री : रेस-कोर्स में उतरे हैं इसलिए। साथवाला आगे बढ़ रहा हो तो इसे इर्ष्या होती है कि वह क्यों पीछे रह जाए।
इस घुड़दौड़ में किसी का नंबर नहीं लगा है। मैं इस घुड़दौड़ में नहीं उतरता। इस घुड़दौड़ में हाँफ-हाँफकर मर जाएँ तब भी किसी का नंबर नहीं लगा है। यों होता तो है अक्ल का बोरा! और अंत में हाँफकर मर जाए तब कहता है 'वह मुझे धोखा दे गया और वह मुझे धोखा दे गया'। अस्सी वर्ष की उम्र में भी तुझे धोखा दे गया! अनंत जन्मों तक इस रेस-कोर्स में दौड़ता रहेगा फिर भी अंतिम दिन तू धोखा खाएगा, ऐसा है यह जगत्। सब बेकार जाएगा। ऊपर से बेहिसाब मार खाएगा। इसके बजाय तो भागो यहाँ से, अपनी असल जगह ढूँढ निकालो, जो अपना मूल स्वरूप है।
इस जगत् को कोई जीत ही नहीं पाया है। इसलिए यह हमारी बहुत गहन खोज है कि जो हमें इस जगत् से जितवा दे। 'हम तो हारकर बैठे हैं, तुम्हें जीतना हो तो आना' कहना। यह हमारी खोज बहुत गहन है। पूरा 'वर्ल्ड' आश्चर्यचक्ति हो जाए ऐसी खोज हैं, और हमने जीत लिया है इस जगत् को! वर्ना, इस जगत् को कोई जीत ही नहीं पाया है। हमारी एक-एक खोज ऐसी हैं कि जो जितवा दे। ऐसी खोज हैं। हाँ, एक-एक खोज! यह 'अक्रम विज्ञान' है ! विज्ञान ही पूरा अक्रम है। क्रम