Book Title: Aptvani 09
Author(s): Dada Bhagwan
Publisher: Dada Bhagwan Aradhana Trust

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Page 470
________________ [७] खेंच : कपट : पोइन्ट मैन ४१९ संसार में था, वही का वही स्वभाव रहा और मोक्ष में जाना है! दोनों साथ में नहीं हो सकता न! यानी यह भी समझने जैसा 'पोइन्ट' है न?! कब क्या आकर खड़ा रहे, वह क्या कहा जा सकता है? कमजोरी सभी तरह से टूट जानी चाहिए न? जहाँ ऐसा सब हो कि ध्येय खत्म कर दे, तो वहाँ क्या होता है? इतनी छोटी सी भूल दिखाई नहीं देती, तो वह क्या काम करती है वह जानते हो? भ्रमित कर देती है इंसान को! भ्रमित हो जाने के बाद फिर कितनी बड़ी भूल करेगा? बिफर जाएगा फिर अहंकार! ___इसलिए ‘प्राइवसी' सुनने का प्रयत्न मत करना कि, 'हमारे लिए क्या कह रहे हैं।' और इसमें ‘इन्टरेस्ट' क्यों आता है ? खुद का कपट है इसलिए। कपट बिल्कुल भी काम नहीं आएगा! अगर कोई व्यक्ति हमारी बात सुनकर आए न, तो फिर वह व्यक्ति हमें मीठा लगता है। प्रश्नकर्ता : वह बात लानेवाला व्यक्ति क्या कहलाता है? दादाश्री : बात लाने वाले इंसान को पास ही मत आने देना। प्रश्नकर्ता : ऐसा नहीं, बात लाने वाले व्यक्ति की स्थिति क्या कहलाती है, जैसे सुनने वाले का कपट कहलाता है, वैसे? दादाश्री : लाने वाले को तो बीच में ऐसा 'इन्टरेस्ट' आता है। 'इन दोनों के बीच में झंझट खड़ी हो,' उसे इसमें रुचि होती है। उसी में डूबा रहता है। प्रश्नकर्ता : उसका भी यह कपट ही कहलाएगा न? दादाश्री : हाँ, वह सब कपट ही है न! एक प्रकार का स्वाद ढूँढता है, 'इन्टरेस्ट' है। प्रश्नकर्ता : जहाँ एक प्रकार का स्वाद ढूँढता है वहाँ सारा कपट ही है?

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