Book Title: Aptvani 09
Author(s): Dada Bhagwan
Publisher: Dada Bhagwan Aradhana Trust

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Page 471
________________ ४२० आप्तवाणी-९ दादाश्री : तब और क्या होता है ? सुगंध आनी चाहिए, सुगंध ! 'कहना पड़ेगा! फलाँ भाई की बात कहनी पड़ेगी!' कहेगा। ऐसी सुगंध आती है। प्रश्नकर्ता : मोक्षमार्ग पर चलने वाले की वह दृष्टि कैसी होती है? निरंतर उसकी समझ कैसी रहती है? दादाश्री : ऐसा सब कहने से कुछ नहीं होगा। कपट भाव वगैरह छूट जाए तो, खुद में जो कपट है वह छूट जाए तो, जितना पता होगा उतना निकल जाएगा। बाकी, ऐसा तो दूसरा बहुत पड़ा है जो पता नहीं है। कपट भाव का अर्थ क्या है? खुद मालिक को यदि उसका पता चल जाता तो कब का ही उसे निकाल देता! इसलिए सावधान हो जाओ। बिवेयर, बिवेयर, बिवेयर! किसी की बात सुनेंगे, तो वह अपना दिमाग़ भी खराब कर देगा। जब हमारी बात दूसरे से सुनकर हमसे कहता है, उस वक्त फिर हमें मीठा लगता है। सभी में होता है यह रोग लेकिन कुछ लोगों को ऐसा जानने की बहुत इच्छा नहीं रहती। कभी किसी दिन कोई आकर कहे न, तो थोड़ा सुनता ज़रूर है, और फिर वह उसे मीठा लगता है। खुद की इच्छा पूरी हुई न! सुनकर आए! अब यह कहनेवाला जो होता है न, उसे पता ही नहीं होता कि मैं यह क्या कर रहा हूँ। वह अपनी मस्ती में ही होता है। बात नहीं समझनी पड़ेगी यह सारी? और बीचवाला व्यक्ति क्या करता है? कई बार बात बिगाड़ देता है, उस घड़ी आपका मन कैसा हो जाता है ? मन बिगड़ जाता है, तकरार हो जाती है और आपको भी निरंतर नुकसान पहुंचाता है। इसके बजाय तो ऐसा 'सिस्टम' ही नहीं रखा जाए तो? जड़ से उखाड़ दिया जाए तो? 'बिज़नेस' ही नहीं, ऐसा 'आइटम' हो ही नहीं तो क्या बुरा है ? ___ पति पूछताछ करे कि 'पत्नी क्या कह रही थी?' और पत्नी पूछताछ करे कि 'पति क्या कह रहे थे?' क्यों है यह सब जानने की इच्छाएँ ? खुद उल्टा है, इसीलिए न! अगर खुद का सीधा हो तो जानने की इच्छा होगी क्या?

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