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आप्तवाणी-९
का ताप उस बच्चे पर पड़ता है, उससे फिर बच्चा घबराता है। तो क्या करना पड़ेगा? बालक जैसा बन जाना पड़ेगा। उनके जैसे ही नासमझ बालक! 'डीलिंग' ही बालक जैसा करना पड़ेगा, तब वे बच्चे खेलेंगे आपके साथ। मेरे साथ सभी, इतना सा डेढ़ साल का बच्चा भी खेलता है। ऐसे खेलते हैं जैसे एक ही उम्र के हों। ऐसा कोई परिणाम तो आना चाहिए न? इस पर सोचना न, तो एक दिन समझ में आ जाएगा। जान लिया तो पता चल जाएगा लेकिन निष्पक्षपाती भाव होना चाहिए। फिर भी भीतर की अजागृति की वजह से पता न भी चले, तो फिर बाद में कभी पता चलेगा।
सभी उल्टे व्यवहार 'इस' दोष से ही होते हैं। जिन्हें उल्टा कहा जाता है, वे सभी 'इस' दोष की वजह से ही होते हैं। मुख्य रूप से यह दोष कि 'मैं जानता हूँ !' बाकी सभी दोष उसके बाद में। इस दोष में से सब उगा है। खेंच (अपनी बात को सही मानकर पकड़े रखना) रहती है, तो वह इस दोष से ही, वर्ना तो सरलता होती है। जितना हमारे साथ ताल-मेल बैठता है, वैसा ही लोगों से ताल-मेल बैठना चाहिए। मेरे साथ क्यों ताल-मेल बैठ जाता है ? जहाँ कुदरती रूप से ताल-मेल बैठ जाए, वह तो सहज चीज़ है। वहाँ आपका क्या पुरुषार्थ है? जहाँ ताल-मेल नहीं खाता, वहाँ ताल-मेल बैठाना, वही पुरुषार्थ है।
ऐसा रोग सभी में रहता है। मैं कुछ जानता हूँ,' ज्ञान ऐसे कैफ सहित बढ़ता जाता है। इस कैफ का अंतराय नहीं होगा तब तो 'ज्ञान' बहुत अच्छी तरह से बढ़ जाएगा, 'फिट' हो जाएगा।
प्रश्नकर्ता : ऐसा कैफ नहीं लाना हो तो भी कई बार आ जाता
दादाश्री : हाँ, वह तो हो जाता है, स्वाभाविक रूप से। प्रश्नकर्ता : ऐसा कैफ खत्म किस तरह से होता है? दादाश्री : वह उत्पन्न ही नहीं होने देना चाहिए। वर्ना उत्पन्न होने