________________
[८] जागृति : पूजे जाने की कामना
४३१
चीज़ में नहीं पड़ना है। जिससे अहंकार को 'स्कोप' मिले, वैसा रास्ता मत देना।
अपने ज्ञान का एक बाल जितना भी कहने जाएगा तो लोग टूट पड़ेंगे। लोगों ने ऐसी शांति देखी नहीं है, ऐसा सुना नहीं है, इसलिए टूट पडेंगे न! और वह अहंकार अंदर बैठा-बैठा हँसता रहेगा, 'हाँ, चलो, अपनी खुराक मिली!' अनादि से ढूँढ ही रहा है ! पूर्णाहुति करनी है या अधूरा रखना है? कच्चा रखना है? पूर्ण करना हो तो किसी भी जगह पर कच्चे मत पड़ना। कोई पूछे न, तब भी कच्चे मत पड़ना।
उपशम, वह है दबा हुआ अंगारा ही पहले बुद्धिगम्य आएगा और वह भी 'ज्ञानीपुरुष' से बहुत समय तक सुनते रहें तब आता है। वह भी, धीरे-धीरे 'स्टडी' करते जाने से आए, तो काम का है।
जिसकी जागृति बढ़ जाए, उसे हमें बहुत सावधान करना पड़ता है। लेकिन अब यदि वह आज्ञा में रहे न, तो उसकी 'सेफसाइड' हो जाएगी, पर 'सेफसाइड' में आना बहुत मुश्किल चीज़ है।
अब खुद का अहंकार दिखाई दे, वही इतनी अच्छी जागति है। वर्ना तो सिर्फ अहंकार ही नहीं दिखाई देता, बाकी सभी कुछ दिखाई देता है। जो चढ़ बैठनेवाला है, सिर्फ वही नहीं दिखाई देता।
बुद्धि क्षय हो जानी चाहिए। उसके बाद अहंकार क्षय होना चाहिए। उसके बाद फिर बाकी सभी पौदगलिक इच्छाएँ क्षय हो जानी चाहिए। अभी तो अंदर वे इच्छाएँ दिखाई नहीं देतीं लेकिन अंदर उपशम पडी रहती हैं। जो भीतर अंदर ही अंदर दबी हुई हैं, वे सभी क्षय होनी चाहिए। अभी तो इन सभी इच्छाओं का खुद को पता नहीं चलता। लेकिन जब तक विषय का विचार आता है तब तक पौद्गलिक इच्छाएँ हैं, ऐसा निश्चित हो गया। जब तक अंदर विषय का विचार तक भी आता है, तब तक पौद्गलिक इच्छाएँ हैं और तब तक सारा दबे हुए अंगारों जैसा है।