Book Title: Aptvani 09
Author(s): Dada Bhagwan
Publisher: Dada Bhagwan Aradhana Trust

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Page 483
________________ ४३२ आप्तवाणी-९ इसलिए सावधान रहना। यह तो बहुत दुष्कर है, गाड़ी उलट देगा, और कहीं का कहीं चला जाएगा। जागृति तो चली जाएगी लेकिन यह समकित भी चला जाएगा। यह अहंकार फिर चढ़ बैठेगा, और बाकी सब भी चढ बैठेंगे। इसलिए भगवान ने कहा है कि उपशम हो चुके गुण हैं, इसलिए अवश्य गिरेगा ही। प्रश्नकर्ता : आपने बारहवें गुणस्थानक में बिठा दिया है तो फिर गिरेंगे नहीं न? दादाश्री : नहीं! नहीं गिरेंगे। यानी गिरने का मतलब क्या है ? व्यवहार में गिरना होता है न! बारहवाँ तो निश्चय से है और व्यवहार में तो अभी भी ग्यारहवें गुणस्थानक में आते ही गिर जाता है वापस । व्यवहार एकदम ग्यारहवें में आता है, और फिर से गिर जाता है। इसलिए ग्यारहवाँ गुणस्थानक व्यवहार का है, उपशम! ___ अतः जब तक क्षय नहीं हुआ है, तब तक यह नहीं चलेगा। पूरा व्यवहार क्षय हुए बिना कुछ भी नहीं चलेगा। अरे, नौवाँ गुंठाणा ही पार नहीं कर सकेगा न! जब तक विषय का विचार आता है न, तब तक नौवाँ गुंठाणा पार नहीं होता। अतः यदि कभी बोलने जाएगा तो दशा बिगड़ जाएगी। जोखिमदारी है ! अत्यंत जोखिमदारी! क्योंकि सभी रोग हैं ही, अभी वे उपशम हुए हैं, क्षय नहीं हुए हैं। उन्हें क्षय होना पड़ेगा। उपशम हुए हैं, इसलिए दबा हुआ अंगारा कहलाएगा। कब भड़क उठेगा, वह कहा नहीं जा सकता। 'खद' के प्रति पक्षपात, स्वसत्ता पर आवरण अभी तो खुद को अपने आप के प्रति पक्षपात है, पूरा ही पक्षपात है। खुद के प्रति पक्षपात नहीं रहे तो खुद की भूल पता चलेगी! पक्षपात समझ में आया? अब 'मैं चंदूभाई हूँ' ऐसा भान तो नहीं रहता है, लेकिन जब कर्म के उदय आते हैं तब 'खुद' उदय स्वरूप हो जाता है ! और उदय स्वरूप हुआ कि जागृति पर आवरण आ जाता है और खुद की भूल दिखाई नहीं देती। लेकिन सत्संग में आते रहने से वह भूमिका

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